शादीशुदा बच्चों की जिंदगी में पैरेंट्स की भूमिका कैसी हो?

शादीशुदा बच्चों की जिंदगी में पैरेंट्स की भूमिका कैसी हो?

बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं, माता-पिता के लिए वे हमेशा बच्चे ही रहते हैं। यह सच है। पैरेंट्स भी समय-समय पर यह लाइन बोलकर हमें याद दिलाते हैं कि ‘तुम भले ही बच्चों के माता-पिता बन जाओ, लेकिन हमारे लिए तुम भी बच्चे ही रहोगे।’

बच्चों को कुछ मौकों पर यह अपनापन, प्यार, चिंता जताना अच्छा लगता है, लेकिन दिक्कत तब हो जाती है, जब यह भावना हावी हो जाये। पैरेंट्स बच्चों की शादी होने के बाद भी उनकी जिंदगी में दखलअंदाजी करें, हर निर्णय खुद लें, उन्हें कुछ भी खुद करने न दें, उन पर दबाव डालें।

कई मामलों में तो यह भी देखा गया है कि पैरेंट्स की दखलअंदाजी के चलते बच्चों का बसा-बसाया घर टूट जाता है या बच्चे ही माता-पिता से दूर हो जाते हैं। कहीं आप भी ऐसी गलती तो नहीं कर रहे, ये जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें, ताकि आप गलती अभी सुधार सकें।

1. हद से ज्यादा देखभाल उन्हें बनायेगी कमजोर

कई पैरेंट्स बच्चों की शादी हो जाने के बाद भी उन्हें इतना बच्चा समझते हैं कि उनके ऊपर ढाल बने खड़े रहते हैं। उदाहरण के तौर पर बेटे को नौकरी तलाशनी है तो दोस्त, रिश्तेदारों से पहचान मिलाकर नौकरी लगा देते हैं। बाइक खराब होती है तो कार खरीद देते हैं। घूमने-फिरने का खर्च, नया फ्लैट हर चीज खुद दिला देते हैं।

ऐसे में बच्चे इन चीजों को पाने के लिए संघर्ष ही नहीं करते और मजबूत नहीं बन पाते। पैरेंट्स बेटी को विदा करने के बाद भी उसकी जिंदगी के फैसले खुद लेते हैं। ससुराल की हर बात बेटी से रोज फोन कर पूछते हैं। उसे सलाह देते हैं। घरवालों के खिलाफ भड़काते हैं। झगड़ा हो जाये तो उसे मायके बुला लेते हैं।

पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को थोड़ा संघर्ष करने दें, ताकि वे भी दुनियादारी सीखें, अपने पैरों पर खड़े हों। हां, उनके पीछे सपोर्ट बनाएं रखें ताकि वो लड़खड़ाएं तो सहारा दे सकें, लेकिन हर चीज में उनकी मदद करना, उन्हें कमजोर बनायेगा। पैरेंट्स को समझना होगा कि जब वे इस दुनिया में नहीं रहेंगे, तब तो बच्चे को सब खुद झेलना होगा। अगर अभी उसे ये सब जिम्मेदारियां उठाना नहीं सिखाया, तो बाद में वो अपने परिवार को कैसे संभालेगा?

2. बच्चों को भी उनके मुताबिक घर सजाने दें

शादी के बाद पति-पत्नी अपना आशियाना बसाना चाहते हैं। वे अलग रह कर बसाएं या पैरेंट्स के साथ रहे, लेकिन वे अपने घर को सजाना जरूर चाहते हैं। नयी मॉडर्न, सुविधाजनक चीजें खरीदना चाहते हैं। ऐसे में कई बार पैरेंट्स टोक देते हैं कि ये मेरा घर है, यहां मेरी मर्जी ही चलेगी। कोई बदलाव नहीं होगा।

कुछ मामलों में उनकी ये बात मानी जानी चाहिए, क्योंकि पुरानी चीजों से उन्हें लगाव होता है, तो उन चीजों को फेंकना उन्हें दुख पहुंचाता है। लेकिन हर बदलाव में ना बोलने की आदत, पूरे घर में अपना हक जताने की जिद के चक्कर में मामला बिगड़ जाता है। बच्चों को लगता है कि जब हम हमारे मुताबिक बदलाव नहीं कर सकते, तो बेहतर है कि अलग घर ले कर इच्छाएं पूरी करें।

पैरेंट्स को चाहिए कि अब अगली पीढ़ी को अपने मुताबिक घर सजाने व चलाने दें। उन्हें सुझाव दें, गाइड करें। लेकिन हर बार, हर बात पर मना ना करें। जब आप बच्चों के मुताबिक घर को सजायेंगे, तो उन्हें भी अच्छा लगेगा। वे उसे अपना घर मानेंगे। आपको सम्मान देंगे।

3. शादी के बाद बच्चों को दें थोड़ा स्पेस

बच्चों को शादी के बाद स्पेस देना जरूरी है। पहले भले ही बेटा आपके पास दिनभर बैठा रहता था, आपके साथ टीवी देखता था, हर जगह साथ जाता था, लेकिन अब उसकी शादी हो गयी है। उसकी जिंदगी में कोई है, जिसे उसे सपोर्ट करना है। अकेलापन महसूस नहीं होने देना है। ऐसे में अगर आप बेटे को बार-बार अपने पास बुला लेंगे। दिनभर उसे बात करते रहेंगे। उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेंगे, हमेशा चिपके रहेंगे। हर जगह साथ जायेंगे, तो बेटा-बहू का रिश्ता मजबूत कैसे होगा? वो कब साथ समय गुजारेंगे? अपने स्पेशल मोमेंट बनायेंगे?

इसलिए शादी के बाद बच्चों को थोड़ा स्पेस दें। उन्हें बाहर अकेला जाने दें। अगर वे कमरे में हैं, तो आवाज लगा-लगाकर बाहर बेवजह न बुलाएं। हमेशा साथ टीवी देखने का दबाव न बनाएं। हां, अगर बेटा पूरी तरह आपसे कट गया है, तो उसे समझा सकते हैं कि पैरेंट्स को भी समय दो। वो समझदार होगा, तो आपको ये बोलने की भी नौबत नहीं आयेगी।

4. नाती-पोतों को संभालना ठीक, अगर बच्चे सम्मान व प्यार दें

जब बच्चे दूसरे शहर में सैटल हो जाते हैं और वे पैरेंट्स बनते हैं, तो कई बार उन्हें बच्चे को संभालने के लिए अपने पैरेंट्स की जरूरत पड़ती है। ऐसे में पैरेंट्स को भी उनके पास जाना पड़ता है, चाहे वो ये सब खुशी से करें या कर्तव्य समझकर। ऐसी परिस्थिति में कई बार पैरेंट्स को समझ नहीं आता कि बच्चों को उनसे प्यार है या वे सिर्फ एक आया, केयर टेकर हैं? बच्चों की जिंदगी में उनकी क्या जगह है?

ऐसे में बच्चों के व्यवहार को देख अपनी भूमिका तय करें। बेटा-बहू नौकरी करते हैं, बच्चों को संभालने में उनकी मदद करना ठीक है, लेकिन बदले में आपको वो प्यार व सम्मान मिले, इस पर भी गौर करें। बच्चों का व्यवहार गलत लगे तो उनसे साफ-साफ बात करें। वैसे हमें समझना होगा कि पैरेंट्स का रोल कभी खत्म नहीं होता है, नाती-पोतों को सुरक्षा व देखभाल देना भी उनकी जिम्मेदारी है। बच्चों के साथ वो भी खुश रहते हैं। उन्हें संस्कार देते हैं।

5. शादी करा देने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती

कुछ पैरेंट्स बहुत कठोर व प्रैक्टिकल होते हैं। उन्हें लगता है कि शादी करा देने के बाद हमारी जिम्मेदारी खत्म हो गयी। ये रवैया भी गलत है। माना कि बच्चे बड़े हो गये हैं, उन्हें जिम्मेदारी उठाना सीखना होगा, लेकिन अभी भी उन्हें आपके अनुभव, सपोर्ट, प्यार की जरूरत है। आप उन्हें एकदम भगवान भरोसे नहीं छोड़ सकते। खासतौर पर तब, जब उन्हें सच में आर्थिक सहारे की जरूरत हो। परिवार में कोई बड़ी समस्या हो। बात मारपीट, तलाक, धोखाधड़ी जैसी बातों तक पहुंच गयी हो। बच्चों को पालने-पोसने में मदद चाहिए?

इन बातों पर ध्यान दें –

  • याद रखें, आपके बच्चे एक नये बंधन में बंध चुके हैं। तो बस, पास रहकर भी दूर रहें और दूर रहकर भी अपने होने का एहसास उन्हें कराते रहें।
  • जब आप बच्चों की मदद करते हैं, तो बच्चे खुश होते हैं या नाराज? आपको थैंक्यू बोलते हैं? आभार मानते हैं? अगर नहीं तो समझ लें कि बच्चों को आपकी मदद दखलअंदाजी लग रही है।
  • अगर आपके बच्चे के जीवनसाथी को आपकी भूमिका पसंद नहीं आ रही तो बेहतर है कि थोड़ी दूरी बना लें।
  • अगर मदद करने के दौरान या बाद में आपको महसूस हो रहा है कि आपका फायदा उठाया जा रहा है या उठाया गया है तो भविष्य के लिए सबक लें। बच्चे अगर सिर्फ मदद के वक्त आपको याद करते हैं और बाकि वक्त भूल जाते हैं तो उनसे खुद दूरी बना लें।
  • मदद के चक्कर में खुद का भी नुकसान न करें। वरना आपको पछतावा हो सकता है।
  • बच्चों के सिर से काम का बोझ कम करने के लिए खुद के कंधों पर इतना काम का बोझ भी न डालें कि खुद की जिंदगी जी ही न पाएं। अपनी हॉबीज पर भी ध्यान दें।
  • हर वक्त उनकी जिंदगी में झांकने की कोशिश न करें। जब उन्हें उनकी समस्या शेयर करनी होगी, तो वे खुद करेंगे।
  • बच्चों के सामने हर वक्त अपनी चिंताओं व कुंठाओं का रोना न रोएं। चाहे वो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हों या पारिवारिक रिश्तों की कड़वाहट।
  • बदलते समय के साथ अपने व्यवहार व सोच में परिवर्तन लाएं, ताकि बच्चे आपसे खुलकर बात कर सकें।