पैर छूना ‘आदर देना या मजबूरी’

पैर छूना ‘आदर देना या मजबूरी’

बचपन से ही हमें सिखाया जाता रहा है कि बड़ों के पैर छूओ.. टीचर्स, गुरू के पैर छुओ… और हम बिना किसी सवाल के, संकोच के घर के बड़ों की बात मानकर पैर छूते भी हैं, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमें पैर छूने के कई मतलब पता चलते हैं। हमें पता चलता है कि पैर छूने और छुआने के पीछे कितनी सारी राजनीति, गलत इरादा, अहम, ऊंच-नीच, बड़ा-छोटा भेदभाव आदि चल रहा होता है। इन सबकी वजह से पैर छूने के पीछे का असली मकसद जो होना चाहिए, वो दूर होता जा रहा है।

पैर छूने का असली मकसद क्या है?

दरअसल पैर छूने का अर्थ है आशीर्वाद लेना, सामने वाले को सम्मान देना। पैर उस इंसान के छूने चाहिए, जिसके प्रति समर्पण का भाव हो। जिसके सामने जाने से अहम खत्म हो जाता हो। पुराने जमाने से यह परंपरा चली आ रही है कि जब हम किसी बड़े या विद्वान से मिलते हैं तो उसके पैर छूते हैं। यह मान-सम्मान से जोड़ कर देखा जाता है। कई बड़े यह भी कहते हैं कि पैर छूने से उस विद्वान व बड़े-बुजुर्ग के गुण, अच्छी बातें आपके अंदर आती हैं।

जब हम यह चाहते हैं कि बड़ों का आशीर्वाद हमारे ऊपर बना रहे। जब हम चाहते हैं कि घर के बड़े हमारे लिए भगवान से प्रार्थना करें या जो प्रार्थना उन्होंने हमारे लिए की है, वो हमें फले, तो हम उनके पैर छूते हैं। पैर छूने पर बड़े भी यही कहते हैं कि ‘भगवान करे, तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी हो, तुम खूब तरक्की करो, सुखी रहो… ’। हमें यकीन होता है कि बड़े ये सारी बातें दिल से कहते हैं, क्योंकि वे हमें प्यार करते हैं। इसलिए हम खुशी-खुशी उनके पैर छूते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं।

पैर छूने पर मजबूर करना मूर्खता

‘पैर छूना’ पूरी तरह से पैर छूने वाले व्यक्ति की इच्छा, उसकी भावना पर निर्भर करता है। वह किसको सम्मान की दृष्टि से देखता है, किसे सम्मान देना चाहता है, किसके गुण अपने अंदर लाना चाहता है, ये सब उसकी मर्जी है। इसमें आप जबरदस्ती नहीं कर सकते।

लेकिन समय के साथ पैर छूने का अर्थ लोग भूलते चले गये। इसे अहम से जोड़कर देखा जाने लगा। कई लोग पैर छूने, न छूने को अपने अहम से जोड़ने लगे हैं। अगर कोई उनके पैर नहीं छूता तो वे नाराज हो जाते हैं। उन्हें लगता कि उनका बहुत बड़ा अपमान हो गया है। वे शिकायत करते हैं कि उसने फलां के पैर छूए, लेकिन मेरे नहीं छुए।

भले ही सामनेवाले व्यक्ति ने अनजाने में यह किया हो, लेकिन वे इस बात को नहीं समझते। वे इसके पीछे का अर्थ निकालते हैं, जो आमतौर पर गलत ही होता है। वे सोचते हैं कि सामनेवाला बड़े पद पर पहुंच गया है, अमीर हो गया इसलिए अकड़ रहा है। झुकने में उसकी इगो आड़े आ रही है, जबकि सच्चाई तो यह होती है कि हम इस सुंदर परंपरा में अपनी इगो खुद बीच में ला रहे होते हैं।

पैर छूना और पैरों में गिरना बराबर समझते हैं लोग

फिल्मों में ऐसा सीन आपने जरूर देखा होगा, जहां विलेन हीरो या हीरोइन की मां को कहता है कि मेरे पैरों में गिरकर माफी मांगो, तभी तुम्हारे बच्चे की जान बख्श दूंगा…। कुछ लोग पैर छूने को भी वैसा ही समझ लेते हैं। अगर कोई उनके पैर छूना भूल जाये या न छूए तो वे अड़ जाते हैं कि जब तक सामनेवाला उनके पैर नहीं छूएगा, वे उससे बात नहीं करेंगे या कोई रिश्ता नहीं रखेंगे।

जब सामनेवाला घर के अन्य सदस्यों के दबाव में आकर या उनके कहने पर नाराज व्यक्ति के पैर छू लेता है, तो उस नाराज व्यक्ति को विजेता होने का अनुभव होता है। वह मन ही मन खुश होता है और सोचता है कि ‘देखा, आखिर उसे मेरे पैर छूने ही पड़े, पैरों पर गिरना ही पड़ा।’ इस तरह की घटनाएं और ऐसी मानसिकता ही इस परंपरा को खत्म करने पर मजबूर कर रही हैं।

उम्र के ऊपर रिश्ता भारी पड़ जाता है

भारतीय परिवारों में जहां दूर के चाचा, मौसी, मामा, बुआ आदि रहते हैं, वहां ऐसे रिश्ते भी बन ही जाते हैं, जहां चाचा उम्र में छोटे होते हैं और भतीजे बड़े। जहां भाभी उम्र में छोटी होती हैं और देवर बड़े। जहां जेठानी उम्र में छोटी होती है और देवरानी बड़ी। ऐसे में बहुत अजीब लगता है और असहज भी महसूस होता है जब उम्र में कोई बड़ा व्यक्ति आपके पैर सिर्फ इसलिए छुए क्योंकि आप रिश्ते में उनसे बड़े हो

सामनेवाले को भी झुकने में अजीब लगता है, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाता, कर नहीं पाता, क्योंकि अगर उसने पैर नहीं छुए तो कोई बुरा मान सकता है, लोग बातें बना सकते हैं, ताना मार सकते हैं। ऐसी सिचुएशन में उन छोटों को समझदारी दिखाने की जरूरत है, जो रिश्तों में बड़े हैं। उन्हें खुद यह कह देना चाहिए कि पैर छूने की जरूरत नहीं। हम रिश्ते में भले ही बड़े हैं, लेकिन आप उम्र में बड़े हैं, तो दोनों ही बस एक-दूसरे को सम्मान दें, यही काफी है।

कई पुराने खयालात के लोग यह पढ़कर, सुनकर कह सकते हैं कि ये पुराने रिवाज हैं, पैर तो छूना ही पड़ेगा। लेकिन अब हमें समझना होगा कि जमाना काफी बदल रहा है। कुछ रिवाज परिस्थितियों को देखते हुए बदल जाएं तो उसमें कोई हर्ज नहीं। जरूरी है सभी का खुश रहना। प्रेम बांटना। सम्मान देना और सम्मान पैर छूकर ही दिया जायेगा, ये जरूरी नहीं।

हरकतें देख नहीं होता पैर छूने का मन

कुछ बड़े-बुजुर्ग व रिश्तों में बड़े लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें देखकर सम्मान दिल से जागता है और आप अपने आप ही पैर छूने को झुक जाते हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं, जो आपके बारे में भला-बुरा कहते हैं। आपको पता होता है कि वे आपको नापसंद करते हैं, नफरत करते हैं। ऐसे में कई बार आप अन्य लोगों के दबाव में आकर पैर छूते हैं या पैर छूने का वक्त आने पर कोई बहाना कर के भाग जाते हैं।

बेहतर होगा कि बहाना बनाकर भागने या मजबूरी में पैर छूने की बजाय उस शख्स का सिर्फ मुस्कुराकर अभिवादन करें। याद रखें कि पैर जबरदस्ती छूआने वाली चीज नहीं है। घरवालों को भी साफ शब्दों में कह दें कि फलां के पैर छूने की मन से इच्छा नहीं होती, इसलिए नहीं छूएंगे।

कोई पैर छुए तो क्या करें?

  • अगर आप उम्र और रिश्ते दोनों में बड़े हैं और कोई आपके पैर छूता है तो उसे दिल से आशीर्वाद दें।
  • कोई आपसे उम्र में बड़ा है, लेकिन आप रिश्ते में बड़े हैं, इसलिए पैर छू रहा है, तो उसे प्रेम से रोक दें। ताकि उनकी असहजा भी खत्म हो जाये और आपके प्रति उनका सम्मान और बढ़ जाये।
  • जब भी कोई पैर छूता है तो उसके सिर पर, पीठ पर हाथ रख कर आशीर्वाद दें। इधर-उधर देखकर, किसी से बात करते हुए, चाय पीते हुुए यूं ही उसे अनदेखा न कर दें। ये सामनेवाले का अपमान है।
  • अगर कोई आपके पैर नहीं छूता तो नाराज बिल्कुल न हो। अपने व्यवहार को और मीठा बनाएं। ऐसा व्यवहार करें, जिससे आपका बड़प्पन झलके।
  • अन्य लोगों को सुना कर कि फलां ने मेरे पैर नहीं छूए। मैं उससे बात नहीं करूंगी। इस तरह अन्य लोगों के जरिये उस इंसान पर दबाव बनाकर पैर छुआने का कोई मतलब नहीं रह जाता। वह इंसान भले ही आपके पैर रिश्ते जोड़े रखने के लिए छू लेगा, लेकिन आप उसकी नजर में हजार गुना नीचे गिर जायेंगी।