‘ना’ कहना भी जरूर सीखें

‘ना’ कहना भी जरूर सीखें

‘सुनो दोस्त, इस बार तुम अपना वीकऑफ कैंसल कर लो न। दरअसल उस दिन मुझे वाइफ को हॉस्पिटल लेकर जाना है। तुम बाद में किसी और दिन छुट्‌टी ले लेना और तब मैं तुम्हारी जगह काम कर लूंगा।’

‘यार मेरा मोबाइल रिचार्ज कर दो। मैं सैलरी आते ही तुम्हें पैसे वापस कर दूंगा।’

‘भाभी, आपकी वो रेड वाली साड़ी पहनने देना ना, जो भैया ने आपको सालगिरह पर गिफ्ट दी थी।’

इस तरह लोग बार-बार आपके सीधे-सादे होने का फायदा उठाते हैं और आप बेवकूफ बनते जाते हैं। ऐसा नहीं है कि आपको उनकी चालाकी समझ नहीं आती। आप जानते हैं कि यह दोस्त अक्सर ऐसे बहाने बना-बनाकर आपका ऑफ कैंसल करवाता है और जब आपको जरूरत होती है तो अपना ऑफ कैंसल करने से मना कर देता है। आप जानते हैं कि मोबाइल रिचार्ज करवाने वाला दोस्त भी सैलरी मिलने पर आपके पैसे नहीं लौटायेगा, क्योंकि वो ऐसे कई ऑनलाइन पैमेंट आपसे करा चुका है, लेकिन पैसे कभी वापस नहीं देता। टालता जाता है। आप जानती है कि पड़ोस वाली भाभी ऐसे आपकी साड़ियां मांग-मांगकर ले जाती है और उसे बहुत खराब करके वापस देती है। लेकिन फिर भी हर बार आप उनकी बातों में आ जाती हैं। ऐसा क्यों? इसका जवाब यही है कि आपको ‘ना’, नहीं बोलना नहीं आता

बहुत बड़ी कमजोरी है ‘ना’ बोल न पाना

कई लोग ‘ना’ कह नहीं पाते। यह बहुत बड़ी समस्या है। इसे कमजोरी कहना ज्यादा उचित होगा। हम लोगों के काम करते जाते हैं, उनकी बातें मानते जाते हैं, अपनी खुशियों का गला घोंटते जाते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें ‘ना’ कहना नहीं आता। यह शब्द हम इसलिए नहीं बोल पाते, क्योंकि हम बदले में लोगों का प्यार चाहते हैं, उनकी तारीफ चाहते हैं। हम चाहते हैं कि लोग हमें अपनाएं। हम रिश्ते बनाएं रखना चाहते हैं। किसी का दिल नहीं दुखाना चाहते। इन सब बातों के चलते हम खुद के साथ अन्याय करते रहते हैं और सहनशक्ति की सीमा तक वो सारे काम करते हैं, जो हमें तकलीफ पहुंचाते हैं, हमें नाखुश करते हैं।

‘ना’ बोलकर देखें, असली चेहरे आयेंगे सामने

जब लोग हर चीज में हमारी ‘हां’ सुनते हैं, तो बदले में हमें विनम्र, अच्छा, मददगार इंसान आदि नामों का ताज पहनाते हैं। लेकिन यदि हमारी सहनशक्ति 10 साल बाद टूट जाती है और हम 11वें साल में किसी काम को लेकर ‘ना’ कह देते हैं, तो वही लोग हमें अभिमानी, अहंकारी, बदतमीज कह देते हैं। वे हमारी 10 साल की मेहनत, त्याग, सेवा को तुरंत भूल जाते हैं। तब हमें लगता है कि काश उसी वक्त ‘ना’ बोल दिया होता।

ऐसा नहीं है कि हर बार ही ‘ना’ कहें

यहां कहने का अर्थ यह नहीं है कि आप हर चीज में ‘ना’ बोलना शुरू कर दें। कहना सिर्फ इतना है कि खुद से सवाल करें कि आपके लिए लोगों का प्यार, तारीफ ज्यादा मायने रखती है या आपकी खुद की खुशी, दिमाग की शांति? यदि आप किसी काम को करने से नाखुश हैं, तनाव में हैं, तो बेहतर है कि आप ‘ना’ कह दें। अगर आपको पता है कि सामनेवाला झूठ बोल रहा है, आपका फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है, आपकी अच्छाई का नाजायज फायदा उठा रहा है, तो ‘ना’ बोल दें। यह न सोचें कि सामनेवाला नाराज हो जायेगा, प्यार नहीं करेगा, फिर वह मुझसे ठीक से बात नहीं करेगा। याद रखें, लोगों को आप हमेशा खुश नहीं रख सकते हैं। आप हमेशा उनके मुताबिक नहीं चल सकते। यदि आप ऐसा करने की कोशिश करेंगे, तो कहीं न कहीं खुद के साथ अन्याय करेंगे।

‘ना’ बोलने का भी एक तरीका होता है

अगर किसी ने आपको कोई काम कहा है या कोई मदद मांगी, लेकिन आप वो काम नहीं कर सकते, आपकी कोई मजबूरी है, तो आप उस इंसान को बड़े प्रेम भाव से समझाएं कि आप ये काम नहीं कर सकते। अगर आपको अपनी मजबूरी बताने में कोई दिक्कत न हो, तो वह भी उसे बताएं। उसे बताएं कि आपको ‘ना’ कहते हुए भी बुरा लग रहा है। जब आप इस तरह ‘ना’ कहेंगे तो सामनेवाला आपके मना करने का बुरा नहीं मानेगा।

दोस्तों, हम उन लोगों के नाराज होने से क्यों डरें, जिनकी राय पल भर में हमारे ‘हां’ या ‘ना’ बोलने से बदल जाती है। आप केवल उन्हें ही अपना मानें, जो आपके ‘ना’ कहने के बावजूद भी आपसे प्यार करें। आपके किसी काम को ‘ना’ कहने की वजह को समझें।

ध्यान रखें, दूसरों से प्यार, सम्मान पाने के लिए अपनी खुशियों का गला न घोंटें, क्योंकि ये छोटे-छोटे त्याग किसी दिन ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ेंगे।