मध्यम वर्गीय पुरुष और तलाक

मध्यम वर्गीय पुरुष और तलाक

मध्यम वर्गीय परिवारों में आजकल तलाक लेना बहुत ही आम बात हो गई है। कारण कुछ भी हो सकता है, जैसे सहनशक्ति की कमी, विचारों का ना मिलना, घर वालों का पति पत्नी के बीच में दखल देना, पत्नी को घर के काम नहीं आना या पत्नी द्वारा घर के काम करने से मना करना, पति का बेरोजगार होना.... आदि। लेकिन आजकल इन सब कारणों के अलावा अब एक और कारण दिखाई दे रहा है, वह है छोटी सोच। इसमें शादी को अहमियत ना देकर पैसों को अहमियत दी जाती है, फिर तलाक लेकर पैसे लूटे जाते हैं।

यहां हम बात लुटेरी दुल्हन जैसे केसेज की नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं लड़कियों/महिलाओं के एक ऐसे तबके की, जो शादी ही इसी सोच के साथ करती हैं कि जम गया तो ठीक वर्ना तलाक लेकर पैसे ले लेंगे और अपनी जिंदगी अपने तरीके से गुजारेंगे। इनके अंदर शादी में समर्पण की भावना नहीं होती, कोई जिम्मेदारी नहीं होती, कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता। संक्षेप में कहें तो इन्हें सिर्फ अपने आप से मतलब होता है। अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीना चाहती हैं। जब इन्हें लगने लगता है कि ससुराल में इनकी मर्जी नहीं चलने वाली तो ये कोई ना कोई कारण लाकर तलाक की दिशा में आगे बढ़ने लगती हैं और कोशिश करती हैं कि ज्यादा से ज्यादा पैसे पति से वसूल किए जाएं। ये लड़कियां मजबूर लड़कियों के लिए बने कानून का गलत इस्तेमाल करती हैं।

फिर दोबारा घर बसाने से भी डरते हैं पुरुष-

इसमें सबसे ज्यादा एक मध्यम वर्ग का पुरुष प्रभावित होता है। क्योंकि तलाक होने पर जब पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है, वह लाखों में होता है। समाज में अपने मान-सम्मान को बचाने के लिए, पुरुष कर्ज लेकर पत्नी को देते हैं और इस मानसिक तनाव से मुक्त होना चाहते हैं। इस कर्ज से निकलने में उन्हें सालों लग जाते हैं। ऐसे पुरुष दोबारा घर बसाने से भी डरते हैं कि कहीं फिर से ऐसी कोई लड़की से वास्ता ना पड़ जाए।

तलाक का आर्थिक रूप से बुरा प्रभाव अगर पड़ता है तो वह इसी व्यक्ति पर पड़ता है। ये एक ऐसा वर्ग है, जो कि सीधा सादा जीवन जीना चाहता है। जिसका सपना होता है कि एक छोटा सा घर हो, माता-पिता का साथ हो, पत्नी घर संभाल ले, बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाए, अपने छोटे-छोटे सपने पूरे कर पाएं। इन सबको पूरा करने की भाग दौड़ में वह लगा रहता है और जब अचानक तलाक जैसा तूफान जिंदगी में आता है तो वह पूरी तरह बिखर जाता है।

छोटी-छोटी बात को नजरअंदाज करें-

लड़कियां बराबरी का दर्जा चाहती हैं, जो कि सही भी है। बराबरी का मतलब है कि उनके साथ भेदभाव ना किया जाए। उन्हें लड़कों से कमतर ना समझा जाए। उन्हें प्रोत्साहित किया जाए, लेकिन क्या यह सही है कि शादी करके किसी का घर बसाने की जगह उजाड़ दिया जाए? किसी लड़के का भविष्य बर्बाद कर दिया जाए। हम यहां पर यह नहीं कहना चाह रहे हैं कि आप पर यदि ससुराल में अत्याचार हो तो आप उसे सहन करें। बिल्कुल नहीं , हम यहां सिर्फ यह कहना चाह रहे हैं कि यदि कोई सीधा सादा पुरुष आपके जीवन में आया है तो छोटी-छोटी बातों को नजर अंदाज करके या स्वीकार करके आगे बढ़ा जा सकता है। पुरुष भी इंसान ही है। वे भी प्रेम, मान-सम्मान के हकदार होते हैं। तलाक लेना ही कोई उपाय नहीं है, मान लीजिए आपने फिर से शादी की और फिर से यही समस्या हुई तो आप क्या करेंगी ??

आपको यह समझना होगा कि कोई भी व्यक्ति सर्व गुण संपन्न नहीं होता। आप में भी कुछ खामियां होंगी, जब सामने वाला व्यक्ति आपको खामियों के साथ अपना रहा है तो आप क्यों ऐसा नहीं कर सकती? हर लड़की को इस बारे में सोचना चाहिए। उनके एक तलाक के कदम से कितनों की जिंदगी पर बुरा असर पड़ेगा। स्त्री को प्रेम त्याग और ममता की मूरत यूं ही नहीं कहा गया है। ससुराल आपका अपना परिवार है। उनके साथ जीवन भर का रिश्ता जुड़ा है। उनके दुख-सुख की जिम्मेदारी आप पर भी है।

(नोट - यह लेख उन लड़कियों के लिए बिल्कुल नहीं है, जो पति का साथ निभाने की बहुत कोशिश करती हैं और किसी मजबूरी में तलाक लेती हैं। यह लेख सिर्फ उन लड़कियों के लिए है, जो सीधे-सादे लड़के देखकर शादी करती हैं और दिमाग में यह पहले से सोच कर रखती हैं कि शादी नहीं निभी तो क्या, पैसे लेकर दोबारा जिंदगी शुरू कर लेंगे।)