मेनोपॉज के लिए भी तैयार रहना जरूरी

मेनोपॉज के लिए भी तैयार रहना जरूरी

पीरियड यानी मासिक धर्म क्या होता है? बच्चियों को इसके लिए मानसिक रूप से कैसे तैयार करें? जैसी बातों पर तो आपने बहुत लेख पढ़े होंगे, लेकिन मेनोपॉज क्या होता है और एक महिला को इसके लिए खुद को मानसिक रूप से कैसे तैयार रखना चाहिए, आज हम आपको बता रहे हैं।

ये तो हम सभी जानते हैं कि 12-13 साल की उम्र में पीरियड शुरू होते हैं, जो एक तरह से माता-पिता के लिए खुशी की बात होती है, क्योंकि यह उनकी बेटी की सृजन क्षमता की पुष्टि करता है। वे अपनी डरी-सहमी बच्ची को भी यही बात समझाते हैं कि तुम्हारे मां बनने के लिए इसका शुरू होना कितना जरूरी था। इस प्रक्रिया से गुजरते हुए सालों गुजर जाते हैं और महिलाओं को इसकी आदत हो जाती है। फिर एक दौर आता है 40-45 की उम्र में जब ये पीरियड बंद हो जाते हैं। इस अवस्था को ही मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति कहते हैं। वैसे तो महिलाओं को इस अवस्था में खुश होना चाहिए क्योंकि उन्हें हर महीने के एक झंझट से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन अक्सर महिलाएं इस अवस्था में आने पर दुखी हो जाती हैं।

क्या होता है मेनोपॉज?

दरअसल कई महिलाओं को बस इतना पता है कि 40-45 की उम्र में पीरियड आना बंद हो जायेंगे। लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि ये सब जितना आसान सुनने में लगता है, उतना होता नहीं है। क्योंकि मेनोपॉज अचानक नहीं होता। यह एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें तीन-चार साल का समय लग जाता है। कुछ महिलाओं के लिए यह काफी दर्दभरा होता है, तो कुछ के लिए यह मानसिक रूप से थका देने वाला होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस प्रक्रिया में पीरियड कभी भी शुरू हो जाते हैं, कभी भी रूक जाते हैं। कभी ज्यादा ब्लीडिंग होती है, तो कभी कम। यानी कुछ भी निश्चित नहीं होता। यह सब तीन-चार साल चलता है। जो आपको थका देता है। इसलिए आज हम आपको इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी दे रहे हैं ताकि आप खुद को इन सब के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लें।

मेनोपॉज में क्या-क्या तकलीफें होती हैं?

मेनोपॉज में कमर दर्द, सिर दर्द, थकान होना, चिड़चिड़ा स्वभाव, तेजी से दिल धड़कना, योनि में सूखापन, खुजली, वजन बढ़ना, त्वचा में रूखापन, बाल झड़ना आम बात है। रक्त स्त्राव कभी भी कम या ज्यादा हो सकता है। ज्यादा परेशानी हॉट फ्लेशेज के आने पर होती है। इसकी वजह से महिला को अचानक गर्मी महसूस होने लगती है, सांस चढ़ जाती है। हार्मोंस में भी कई सारे बदलाव हो रहे होते हैं, जिसके कारण मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, कभी डिप्रेस हो जाना होता रहता है। अलग-अलग महिलाओं में ये लक्षण अलग-अलग भी हो सकते हैं। बस 40-45 की उम्र के लगभग हर महिला को इस स्थिति से गुजरना ही पड़ता है। यहां परेशानी इस बात की आती है कि शारीरिक तकलीफों के लिए महिला को डॉक्टर दवाईयां बता देते हैं। बस महिलाएं मानसिक रूप से हो रहे बदलावों को झेल नहीं पाती, जिसका असर पूरे परिवार खासतौर पर पति-पत्नी पर पड़ता है।

महिलाएं क्यों होती है दुखी?

महिलाओं को इस बात का दुख होता है कि अब उनकी प्रजनन क्षमता खत्म हो जायेगी। उन्हें इस वजह से एक अधूरापन सा अहसास होता है। इसके अलावा इस दौरान महिला को बार-बार पेशाब करने जाना पड़ता है। योनि सूखने लगती है। इसके चलते महिला को लगता है कि उनके बेडरूम लाइफ अब पहले जैसी नहीं रहेगी। उन्हें लगता है कि अब पति की मुझसे दिलचस्पी कम हो जायेगी। उनका प्यार कम हो जायेगा। वगैरह.. वगैरह…। इस पूरी प्रक्रिया में महिलाएं गुस्सैल, चिड़चिड़ी, उल्टा जवाब देने वाली, किसी की न सुनने वाली बन जाती है। इस कारण घर के अन्य सदस्य भी उनसे बात करने में कतराते हैं। उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। इस वजह से वह और ज्यादा डिप्रेस्ड हो जाती है और उसे लगता है कि जिंदगी अब खत्म हो गयी है। जीवन में अब कुछ नहीं बचा।

बस कुछ साल का संघर्ष है, फिर सब नॉर्मल

महिलाओं को समझना होगा कि यह कुछ सालों का संघर्ष है। अगर वे इसे दुखी होकर काटेंगी तो जीवन और दुखमय हो जायेगा। बेहतर है कि इन सालों में खुद की ज्यादा देखभाल करें। खुद को खुश रखने का प्रयास करें। अपनी हॉबीज पर काम करें। अपना मन अपने पसंदीदा काम में लगाएं जैसे डांस, म्यूजिक, ड्रॉइंग, कुकिंग, सिलाई, गार्डनिंग, राइटिंग, रीडिंग जो भी हो। अच्छा खाना खाएं। सकारात्मक सोच रखें। खुश हो जाएं कि जल्द ही आप सेनेटरी पेड, टैम्पोन के झंझट से मुक्त होने वाली हैं।

घर के लोगों का सपोर्ट जरूरी

इस पूरी प्रक्रिया में अगर घर के लोग सहयोग करें, तो महिलाओं का यह मुश्किल भरा समय आसानी से कट सकता है। ऐसे समय में महिला को पति, बच्चों व घर के अन्य सदस्यों के प्यार की जरूरत होती है। जब प्यार मिलता है, तो वह खुद को खुशनसीब समझती है, सुरक्षित महसूस करती है। उसे अकेलापन महसूस नहीं होता। परिवार के लोगों को महिला के स्वभाव में आये बदलाव को समझते हुए उनसे व्यवहार करना चाहिए। उनकी कही गयी बातों पर बुरा मानने के बजाय, दिल से लगाने के बजाय, उनका साथ देना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि महिला को तनाव न हो, झगड़ा न हो।