महिलाओं की दो बड़ी कमजोरियां, अधिकार छोड़ देना और गिल्ट पाल लेना

महिलाओं की दो बड़ी कमजोरियां, अधिकार छोड़ देना और गिल्ट पाल लेना

काम की हड़बड़ी में पति को नाश्ता नहीं दे पायीं और पति बिना नाश्ता किये ही ऑफिस चले गये तो गिल्ट, बीमार पड़ गयीं और सास-ससुर व पति-बच्चों को घर का काम करना पड़ा तो गिल्ट, बर्थडे पर पति ने महंगा तोहफा दे दिया तो इस बात का गिल्ट की मुझ पर इतने रुपये खर्च करने पड़े…। मर-मरकर घर के सारे काम करना, ये सोचकर कि मैं कमाती नहीं हूं, बोझ हूं सब पर।

इस तरह भारतीय महिलाओं को हर बात का गिल्ट हो जाता है। उन्हें बचपन से ही ऐसा बनाया जाता है कि वे त्याग की मूर्ति बनें, दूसरों के बारे में पहले सोचें, समर्पण करें, खुद को सबसे आखिरी में रखें और परिवार को पहले। और जब भी कोई महिला ऐसे काम करती है, जो इन मापदंडों में फिट नहीं होते, तो लोग उन्हें असंस्कारी, बेशर्म, मतलबी, चालबाज जैसे नामों से पुकारने लगते हैं। जबकि उनकी कोई गलती नहीं होती। ऐसी तमाम बातों पर पिछले दिनों एक बहुत अच्छा भाषण सुनने को मिला। इसे भाषण भी कह सकते हैं और डायलॉग भी। आप भी जरूर पढ़ें।

अनुपमा सीरियल के इस डायलॉग से लें सीख

बीते 12 जून को टेलीकास्ट हुआ फेमस सीरियल अनुपमा का यह डायलॉग है। जो लोग नहीं जानते उन्हें सीरियल की कहानी शॉर्ट में बता दूं कि सीरियल की नायिका अनुपमा ने अपने पति वनराज को तलाक दे दिया है, क्योंकि पति का अफेयर काव्या के साथ था। तलाक के बाद वनराज ने काव्या से शादी भी कर ली है। अब पूरा परिवार एक होटल में ये सब होने के बाद घर आया है और अनुपमा वापस अपने मायके जाने को निकली है, क्योंकि उसे लगता है कि तलाक के बाद ससुराल में रहने का कोई अधिकार नहीं होता। ऐसे में उसके ससुर उसे रोकते हैं और कानूनी कागज देकर बताते हैं कि उन्होंने इस घर के तीन हिस्से कर दिये हैं। एक बेटे वनराज के नाम, एक बेटी डॉली के नाम और तीसरा हिस्सा अनुपमा के नाम। और वह तलाक होने के बावजूद उनकी बेटी की तरह इसी घर में रहेगी। इस पर अनुपमा कहती है कि मुझे कोई हिस्सा नहीं चाहिए बाबूजी। मेरा अधिकार सिर्फ आपका आशीर्वाद है।

Anupama

तब बाबूजी कहते हैं – ‘गलती तेरी नहीं है बेटा। गलती समाज की है, परंपरा की है, हमारी है। हमने औरत को सिर्फ त्याग करना सिखाया है। अधिकार छोड़ना सिखाया है। अधिकार मांगना नहीं। फिल्मों में, टीवी पर, कहानियों में सिर्फ उसी औरत को महान बताया जाता है, जो सबसे पहले अधिकार छोड़ देती है। पर अधिकार छोड़कर कहानियां चलती होगी, जिंदगी अधिकार लेकर ही चलती है।

मैं तुमसे ही नहीं, तेरे जैसी हर बेटी से कहता हूं कि हर बात में महान बनने का प्रेशर मत लो। औरत को अपना हक लेने में, हिस्सा लेने में गिल्ट क्यों होता है? सहेली के साथ पांच मिनट फोन पर बात कर ली, तो गिल्ट। बच्चों को घर छोड़ कर 10 मिनट वॉक क्या कर ली, तो गिल्ट। दो दिन मायके चली गयी तो गिल्ट। साल में एक बार बाहर से खाना मंगवा लिया, तो गिल्ट। दवाई मंगानी पड़ी तो गिल्ट। हर बात में गिल्ट? मर्दों के हिस्से में दुनिया का कोई गिल्ट नहीं आता तो औरत के हिस्से में क्यों?’

बाबूजी आगे कहते हैं, ‘इस देश की औरतों को कौन समझायेगा कि अपने लिए सोचना पाप नहीं है। एक बात मुझे बता, क्या तुम इंसान नहीं हो? घर में कोई काम-काज नहीं करती? अरे घर के बर्तन घिस-घिस कर औरत हथेली तो क्या, तकदीर की लकीरें भी घिस देती है, फिर भी उसे मिलता क्या है, गिल्ट? इस घर में तेरा पसीना लगा है। इस घर के सुख-दुख, रिश्ते-नाते सब तूने बनाये हैं, तो इस घर का हिस्सा लेने में गिल्ट क्यों? सबको लगता है कि मकान है तो बेटे को ही मिलेगा, क्यों भई। बेटे में ऐसे कौन से हीरे जड़े हैं और बहू-बेटी ने ऐसे कौन से पाप किये हैं, जो उन्हें हिस्सा नहीं मिलेगा। ये अहसान नहीं, अधिकार है जो वनराज और डॉली को मिला है और तूने कमाया है।

अनुपमा की सास कहती हैं, ‘तेरे बाबूजी एकदम सही कहते हैं। पहले मुझे भी लगता था कि एक बार बेटी की शादी हो गयी तो बाद में बेटी जाने और उसका परिवार। और बहू का क्या है, वो तो बेटे के साथ ही रहती है, उसको अलग से क्या देना? धीरे-धीरे मुझे भी समझ में आने लगा।

वो फिल्मी गाने में सुना है सबको अपना-अपना आसमान चाहिए। एकदम बकबास है। आसमान तो सभी का एक होता ही है, सबको तो अपने हिस्से की छत मिलनी ही चाहिए। खासतौर पर औरत को। औरत के नाम पर घर या जमीन का टुकड़ा तो होना ही चाहिए, ताकि कल को कोई उठकर ये न कह सके कि निकल जा मेरे घर से।’

बाबूजी कहते हैं, ‘हर औरत के पास एक घर तो होना ही चाहिए, जिसके बाहर नेमप्लेट पर पति, पिता या बेटे का नहीं, उसका खुद का नाम हो। हर रोज आस-पड़ोस में या न्यूज में देखने को मिलता है कि फलां औरत को उसके पति ने घर से निकाल दिया, बेटे ने घर से निकाल दिया और औरत को जाने को कोई दरवाजा नहीं मिला, जानती हो क्यों? उसी महानता के कीटाणुओं के कारण।

तू समझ सकती है क्योंकि तुझे भी एक बार तेरे पति ने घर से बाहर निकाल दिया था। तेरे बेटे-बहू तुमझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन कौन-सा रिश्ता कब रंग बदल दे, कोई नहीं जानता, इसलिए हर औरत के पास एक अपना घर होना चाहिए। बेटा..., ये समाज ही ऐसा है कि हम सिर्फ रोटी कमाने वाले की इज्जत करते हैं, रोटी बनाने वाले की नहीं। ये इज्जत करना हर इंसान को, हर परिवार को, हर घर को सीखनी चाहिए। अपना हक, हक से लें।

क्यों नहीं लेती महिलाएं अपना अधिकार?

महिलाओं को लगता है कि पति के नाम पर कुछ है तो वो उनका भी है। अब आगे का जीवन पति के साथ ही गुजारना है तो क्या फर्क पड़ता है कि घर का जमीन किसके नाम पर है? वे ये भूल जाती हैं कि भविष्य में पति की सोच बदल सकती है। यहां बात डराने या शक पैदा करने की नहीं है, लेकिन पतियों को खुद घर दोनों के नाम करना चाहिए ताकि पत्नी सुरक्षित महसूस करे।

वहीं कई महिलाएं मायके से अपना हक मांगने से कतराती हैं। उन्हें लगता है कि भविष्य में कभी ससुराल वालों ने निकाल दिया तो मायका ही सहारा होगा, ऐसे में घर, जमीन, जायदाद में अपना अधिकार मांगूगी तो हो सकता है कि भाई-भाभी, माता-पिता नाराज हो जायें। मैं उन्हें नाराज कर के रिस्क नहीं ले सकती। इस सोच के चलते वे अधिकार खुद छोड़ देती हैं कि मुझे कोई हिस्सा नहीं चाहिए, सब भाई को दे दो। यह बहुत बड़ी गलती है। लड़कियों को अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए। साथ ही माता-पिता को भी चाहिए कि भले ही बेटी की शादी हो जाये, लेकिन उसे बराबर हिस्सा दें, ताकि उसका भविष्य सुरक्षित रहे। वह किसी पर निर्भर न रहे।