‘एंग्जाइटी’ - तेजी से बढ़ रही ये बीमारी

‘एंग्जाइटी’ - तेजी से बढ़ रही ये बीमारी

यह एक दुख की बात है कि एंग्जाइटी बीमारी पूरी दुनिया में काफी तेजी से बढ़ने वाली बीमारी है। यह दिमागी बीमारी में नंबर 1 पर है। इससे 18 से अधिक उम्र के लोग ज्यादा जूझ रहे हैं। इसमें भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि बहुत ही कम लोग, लगभग एक चौथाई ही अपनी इस बीमारी को दूर करने के लिए इलाज कराने की कोशिश करते हैं बाकि इसी के साथ जीवन भर लड़ते हैं

इस बीमारी का पता लगा पाना काफी मुश्किल है, क्योंकि बाहरी तौर पर किसी को भी देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस इंसान को कौन सी चीज परेशान कर रही है, वह किस चिंता से ग्रस्त है, कौन सी बात उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही है। कई लोग अपनी इस बीमारी के लक्षणों को भी छिपाने में लगे रहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर सभी को उनकी बीमारी का पता चल गया तो लोग उनसे दूर हो जायेंगे, उनका मजाक उड़ायेंगे, उनका जीना और मुश्किल हो जायेगा।

पुरुषों की एंग्जाइटी हार्ट अटैक का रूप भी ले लेती है

एक सर्वे के अनुसार भारत के बड़े शहरों में करीब 20 प्रतिशत लोग इसके शिकार है, जिनमें से 65-70 प्रतिशत हाउसवाइफ हैं। वैसे पुरुषों में एंग्जाइटी ज्यादा गंभीर होती है, क्योंकि महिलाओं की एंग्जाइटी ज्यादा लंबे समय चलती है, लेकिन पुरुषों में यह कम समय के लिए होती है। शॉर्ट-पीरियड होने के कारण यह खतरनाक हो जाती है और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों का रूप ले लेती है।

क्यों होती हैं एंग्जाइटी?

खराब जीवनशैली, अनहेल्दी खाना, काम का स्ट्रेस, स्कूल-कॉलेज में कॉम्पीटिशन, अकेलापन, कोरोना जैसी बीमारियां, आसपास का तनाव भरा माहौल, समाज में हो रही घटनाएं, आर्थिक समस्याएं, खराब रिलेशनशिप जैसी कई बातें हैं, जिनकी वजह से एंग्जाइटी हो रही है।

बच्चों समेत हर उम्र के लोग एंग्जाइटी का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि एंग्जाइटी के लक्षण नजर आते ही उसका ट्रीटमेंट करवाया जाये, क्योंकि यह दिल से संबंधित बीमारियों का पहला कारण भी बन सकती है। अगर एंग्जाइटी बहुत समय तक रहती है, तो मरीज को डिप्रेशन, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर की समस्याएं होने लगती हैं

कई तरह की एंग्जाइटी होती है

1. सोशल एंग्जाइटी - इसमें मरीज को अजनान लोगों से बात करने में घबराहट होती है। वे भीड़ वाली जगहों पर जाने से बचते हैं। कभी भीड़ में फंस जायें, तो पसीना आने लगता है। घबराहट होती है, दम घुटता है।

2. फोबिया – यह भी एंग्जाइटी का ही प्रकार है। उदाहरण के तौर पर तंग बंद स्थान से डर और ऊंचाइयों से डर शामिल हैं। इस स्थिति में भयग्रस्त वस्तु या स्थिति से बचने की तीव्र इच्छा होती है।

3. बॉडी इमेज एंग्जाइटी – इसमें मरीज अपने लुक्स को लेकर हद से ज्यादा परेशान रहते हैं। वे अपने लुक्स को लेकर इतना ज्यादा सोचते हैं कि उनका खान-पान, रहन-सहन सब गड़बड़ा जाता है।

4. जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर (जीएडी) – मरीज बहुत ज्यादा नेगेटिव बातें करता है। जरूरत से ज्यादा सोचता है। उन्हें लगता है कि उनके साथ ही बुरा हो रहा है। ऐसे में वे हमेशा तनाव में रहते हैं। डिप्रेशन में चले जाते हैं। बीमार हो जाते हैं। इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है।

5. ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर – इसमें मरीज हमेशा ही चिंतित और डरा हुआ रहता है। इसमें अजीब आदतें विकसित हो जाती हैं जैसे- बार-बार हाथ धोना, हद से ज्यादा सफाई रखना। इसमें मरीज एक ही बात कई घंटों तक सोचता है और उसी पर बोलता जाता है। अपनी लाइनें दोहराता है।

क्या हैं प्रमुख लक्षण

अधिक उम्र के लोगों को एंग्जाइटी होने पर घबराहट होती है। सांस में रुकावट जैसा महससू होता है। हार्ट बीट बढ़ जाती है। वहीं बच्चों में सांस न आने, चेस्ट या पेट में दर्द की फीलिंग होती है। किसी भी चीज को लेकर घबराना, बेचैन होना, हार्ट बीट तेज होना, सीने में दर्द होना, सांस लेने में कठिनाई होना, एक ही बात दोहराना, हाथ-पैर ठंडे पड़ जाना, कंपन, हाथ-पैर में झुनझुनी, बहुत ज्यादा पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, नींद न आना आदि इसके लक्षण हैं।

क्या इलाज है इस बीमारी का

हर किसी में एंग्जाइटी का स्तर अलग-अलग होता है, इसलिए यह बीमारी ठीक होगी कि नहीं, कितना वक्त लगेगा, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आपमें एंग्जाइटी का स्तर क्या है? यह कितनी गंभीर है? मनोचिकित्सक इन बातों को देखते हुए ही इलाज करते हैं। वैसे देखा गया है कि बड़ों के मुकाबले बच्चे बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं। इसे ठीक करने के लिए निम्न प्रकार की थेरेपी इस्तेमाल की जाती है।

1. कॉग्निटिव्स बिहेवियर थेरेपी या सीबीटी - इसमें मरीज की सोच को बदलने की कोशिश की जाती है। विभिन्न तरह की एक्टिविटीज, एक्सरसाइज के जरिये मरीज को सिखाया जाता है कि किस तरह परिस्थितियां खराब होने पर उन्हें व्यवहार व दिमाग को स्थिर रखना है।

2. साइकोएनालिसिस थेरेपी - पुरानी किसी घटना की वजह से पैदा हुई एंग्जाइटी का इलाज किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर मरीज वयस्क है और बचपन में उसके साथ कोई घटना हुई हो, जिससे वह अभी तक परेशान हो, तो उस घटना की जड़ में जाकर, उस घाव को भरने की कोशिश की जाती है।

3. हिप्नोथेरेपी - इसे हिप्नोसिस थेरेपी भी कहते हैं। यह तब इस्तेमाल की जाती है जब मरीज अपनी बुरी यादों से बाहर नहीं निकल पाता या यह नहीं पता लगा पाता कि कौन सी बात उसे परेशान कर रही है। ऐसी परिस्थिति में हिप्नोथेरेपी के जरिये उससे वजह जानने की कोशिश की जाती है।

4. विजुलाइजेशन और सिस्टेमेटिक डीसेंटरलाइजेशन - इस तकनीक में मरीज के दिमाग को मजबूत किया जाता है। उसके दिमाग की सहनशक्ति बढ़ाई जाती है। इसमें एंग्जाइटी को धीरे-धीरे इतना बढ़ा दिया जाता है कि उसे झेलने के लिए मरीज मेंटली तैयार हो जाता है

5. प्ले थेरेपी और आर्ट थेरेपी - इसका उपयोग बच्चों के लिए किया जाता है। इसमें बच्चे को मनोचिकित्सकों द्वारा डिजाइन किए गए साइकोलॉजिकल गेम्स खेलने दिए जाते हैं, जो काफी मददगार साबित होते हैं।

क्या करें कि इस बीमारी से बच सकें

कोशिश करें कि हेल्दी लाइफस्टाइल मेंटेन करें। कम से कम 30 मिनट वॉक या एक्सरसाइज करें। तनाव को कम करने के लिए वो काम करें, जो आपको पसंद हैं। दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ समय बिताएं। कोई समस्या हो तो किसी अपने से शेयर करें। नींद पूरी लें। पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं। धूम्रपान और एल्कोहल से बचें, ये चीजें एंग्जाइटी बढ़ाती हैं।