किशोर बच्चे से बात करने के ६ असरदार तरीके

किशोर बच्चे से बात करने के ६ असरदार तरीके

जब बच्चे छोटे होते है तब वह माता-पिता की हर बात मानते है क्योकि तब उनमे उतनी समझ नहीं होती। लेकिन जैसे जैसे बच्चे बड़े होते है, उनकी अपनी समझ, अपनी सोच विकसित होने लगती है।

किशोरावस्था

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार १० से १९ साल की उम्र में बच्चो में हॉर्मोन्स की वजह से शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक बदलाव होते है।

किशोरावस्था के ३चरण है, (*उम्र लगभग में )

  • प्रारंभिक चरण - १० - १३ की उम्र के बीच
  • मध्यम चरण - १४ -१७ की उम्र के बीच
  • अंतिम चरण - १८ - २१ की उम्र के बीच या उससे अधिक

कहते है किशोरावस्था मनुष्य जीवन का एक अहम् चरण है क्योकि यह वह समय है जब एक बच्चा बचपन से निकलकर वयस्कता की ओर बढ़ता है। यह वह नाजुक दौर है जिसमे जरा-सी भी लापरवाही बच्चे के आने वाले संपूर्ण जीवन पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।

बच्चो के किशोर वय में आने के बाद माता-पिता की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है और आपको बच्चे के बदलते व्यवहार को समझना होगा। जाहिर सी बात है की एक ही समय में इतने सारे परिवर्तनों का होना मतलब किशोर किस स्थिति से गुजर रहे होते है कभी-कभी माता-पिता को इसका अंदाजा भी नहीं हो पाता जबकि माता-पिता खुद भी कभी ऐसी स्थिति से गुजर चुके होते है।

किशोरों से बात करने के ६ असरदार तरीके

किशोरावस्था में बच्चो और माता-पिता के रिश्तो में बदलाव आने लगता है। इस उम्र के बच्चे अपने माता-पिता के बजाय दोस्तों से बात करना ज्यादा पसंद करते है और अधिकतर समय दोस्तों के साथ बिताना पसंद करते है। ऐसे में कभी-कभी वे अपने परिवार से कटने लगते है।

ऐसे में जब माता-पिता उनसे बात करने की कोशिश करते है तो उन्हें ठीक से जवाब नहीं मिलता और शुरू होती है दोनों के बीच बहस।

किशोर वयीन बच्चो से बात करना एक कला है, एक चुनौती है, जिसे आपको सीखना होगा। आइये, यहाँ हम कुछ तरीको पर गौर करते है की कैसे इस प्रक्रिया को सहज बनाया जा सकता है।

१ मौके का इंतजार मत कीजिये

जब हम बच्चो के बोलते है की हमे आपसे आमने-सामने बैठकर बात करनी है तो बच्चे असहज हो जाते है। बच्चो को ऐसी औपचारिक बाते पसंद नहीं आती है। कई बार वे तनाव और झिझक महसूस करते है और अपनी बात खुलकर नहीं कह पाते।

ऐसे में आपको जब भी मौका मिले तब बात कीजिये जैसे घर के काम करते वक़्त, गाडी में आदि। कुछ माँ-बाप ने यह पाया है की जब बच्चो से इस प्रकार किसी भी वक़्त या कही भी आकस्मित बात करते है तो बच्चे भी खुलकर अपनी बात कह पाते है।

२ बातचीत छोटी रखिये

मसला चाहे कोई भी हो, माँ-बाप ने कभी भी बातचीत को लम्बा नहीं खींचना चाहिए। बस अपनी बात बोलकर चुप हो जाना चाहिए। उस समय भले ही आपको ये लग सकता है की आपके बच्चे ने आपकी बात पर ध्यान नहीं दिया। पर ऐसा नहीं है, जब वह अकेला होगा तो आपको कही हुई बात पर जरूर गौर करेगा और उस बारे में सोचेगा भी।

लेकिन ये तभी मुमकिन है जब आप उसे सोचने का मौका देंगे। इसीलिए, अगर किसी भी मसले पर माँ-बाप की तरफ से बातचीत छोटी होगी तो बहस और तनाव नहीं होगा और आपका बच्चा भी शांति से आपकी कही हुई बातो को समझने की कोशिश करेगा।

३ धैर्य रखे

यदि आपका बच्चा बातचीत के दौरान बदतमीजी से पेश आता है तो खुद पर धैर्य बनाये रखे। उस समय उसकी बातो को नजरअंदाज करिये और शांति से उसे सही बात समझाने की कोशिश करिये। उसे समझाइये की उसका ये तरीका सही नहीं है।

कई बार बच्चे से जुड़ने के लिए मजाकिया व्यव्हार करिये। अपनी भी रोजमर्रा को बाते उससे सांझा करे । हो सकता है आपके इस व्यावहारिक बदलाव से वो आपक अपना दोस्त समझने लगे और उलटे जवाब देने की बजाय वो आपको सीधे जवाब देना शुरू कर देगा।

४ उनकी बाते सुनिए और लिहाज करिये

अपने किशोरों की बातो को ध्यान से सुनिए और समझने की कोशिश करिये की वास्तव में वो क्या कहना चाह रहे है। उन्हें बात के बीच में टोके नहीं। ऐसा करने से आप भी उनकी समस्या को अच्छी तरह समझ सकते है।

किसी भी मसले पर बातचीत के दौरान उनके विचार क्या है, उनकी भावनाए क्या है, जानकर उनके विचारो और भावनाओ का लिहाज़ करते हुए जवाब दीजिये। ऐसे में यदि आप अपनी ही बात पर अड़े रहे तो आपका बच्चा आपसे केवल वही बात कहेगा जो आप सुनना पसंद करते हो। लेकिन असल में वो वही करेगा जो उसका मन बोलता है।

५ उन्हें खुद के लिए फैसले लेने में मदद कीजिये

जब आपका बच्चा किसी उलझन में होता है तो उसकी उलझन को हल करने के लिए आप फैसले मत लीजिये उल्टा आप उसे मसले पर चर्चा क दौरान २-३ विकल्प और उनके फायदे -नुकसान बता दीजिये।

ऐसी स्थिति में वह आपके द्वारा सुझाये गए विकल्पों के बारे में गहराई से सोचेगा और अपनी काबिलीयत के अनुसार फैसला लेगा। पर याद रहे, आपके बच्चे से ये जरूर पूछिए की उसने क्या विकल्प चुना है और क्यों?

जिस तरह शरीर को मजबूत बनाने के लिए कसरत की जरूरत होती है, उसी तरह आपके किशोर की जाँच-परख की काबिलीयत बढ़ाने के लिए उसे खुद सोच के खुद के फैसले खुद लेने की जरूरत है।

६ उसे अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी दीजिये

घर में ऐसा माहौल बनाये की बच्चा खुद के विचारो को खुलकर व्यक्त कर सके। हो सकता है कभी-कभी वह बड़े व्यक्ति की तरह बात करने लगे। इसे चुनौती न समझते हुए यह याद रखे की अब आपका बच्चा बड़ा हो रहा है और उसे भी अपने जज़्बात जाहिर करने का हक़ है। लेकिन साथ ही उसे यह अहसास दिलाना भी जरूरी है की वह अपनी मर्यादा की हदे पार न करे।

किशोरावस्था का दौर बच्चो के लिए मुश्किल के साथ- साथ रोमांचित भी होता है। इस दौर में बच्चो को माता-पिता के सहयोग की आवश्यकता है। तो ये हर माता-पिता का फर्ज है की बच्चो के इस अहम् पड़ाव में हर कदम पर उनको पूरा सहयोग करे। बस जरूरत है धैर्य और संयम की।

उपरोक्त तरीको के अलावा आपके पास यदि अन्य कोई सुझाव है तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करे।