बच्चों में कॉन्फीडेंस बढ़ाने के लिए 7 टिप्स

बच्चों में कॉन्फीडेंस बढ़ाने के लिए 7 टिप्स

सभी पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे की पर्सनालिटी बहुत प्रभावशाली हो। वो बहुत कॉन्फीडेंट हो, टैलेंटेड हो, कई एक्टिविटीज में भाग लेता हो, सब उसकी तारीफ करें… वगैरह.. वगैरह…। लेकिन क्या आपको पता है कि आपका बच्चा ये सब तभी बनेगा, जब आप खुद में कुछ बदलाव करेंगे। जी हां, पैरेंट्स में भले ही खुद के अंदर हजार खामियां हो, लेकिन वे बच्चे से परफेक्शन की उम्मीद करते हैं। वैसे ये सोचना भी अच्छी बात है कि जो कमी हमारे अंदर है, वो हमारे बच्चे में न हो।

इसलिए पैरेंट्स आपको इन सारी खूबियों को बच्चों के भीतर डेवलप करने के लिए उनकी परवरिश करते वक्त कुछ खास बातें ध्यान रखनी होगी। आज हम आपको ऐसी ही जरूरी बातें बता रहे हैं। अंत तक जरूर पढ़ें-

1. बच्चों के असाइनमेंट, मॉडल्स उसे ही बनाने दें

कभी भी बच्चों को ये नहीं कहें कि ‘तुम्हें नहीं आयेगा, लाओ मैं इसे कर देती हूं।’ इस तरह लगातार ये सुनते रहने से बच्चों का कॉन्फीडेंस कम होता है और उन्हें भी यकीन हो जाता है कि वे खुद कुछ भी ठीक से नहीं कर सकते हैं। कुछ मामलों में उल्टा भी हो जाता है। बच्चे गुस्से में आकर खुद को साबित करने के लिए कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं, जो उन्हें सच में नहीं करने चाहिए थे।

इसलिए बेहतर हैं कि उन्हें बहुत कम उम्र से ही खुद के निर्णय लेना सिखाएं। उन्हें उनके प्रोजेक्ट, असाइनमेंट, मॉडल्स खुद बनाने दें। ये न सोचें कि बच्चा उन्हें बिगाड़ देगा तो नंबर कम आयेंगे इसलिए खुद ही बना कर स्कूल में दे दूं। बच्चों को सिर्फ गाइड करें। मदद करें। हो सकता है कि आज वे असाइनमेंट उतने अच्छे नहीं बना पायेंगे, नंबर भी कम आएं, लेकिन बच्चा जब ये खुद करेगा, तो भविष्य में ये सब बहुत काम आयेगा। वह आत्मनिर्भर बनेगा।

2. बच्चे वहीं सीखते हैं, जो पैरेंट्स करते हैं

पैरेंट्स बच्चों को जो-जो करने बोलते हैं, बच्चे वे नहीं सीखते। बल्कि पैरेंट्स खुद जो-जो काम करते हैं, बच्चे वे सीखते हैं। इसलिए पैरेंट्स को पहले अपने अंदर कॉन्फीडेंस डेवलप करना होगा और सारे काम खुद करने होंगे, तभी बच्चे उन्हें देख कर मोटिवेट होंगे और सीखेंगे

उदाहरण के तौर पर पैरेंट्स अगर चाहते हैं कि बच्चे साइकिल सीखें, तो पैरेंट्स को पहले खुद गाड़ी चलाना सीखना होगा। बैंक के काम करने होंगे। लोगों से कॉन्फीडेंस के साथ बात करना होगा। इसके अलावा पैरेंट्स को गॉसिप करना, झूठ बोलना बंद करना होगा।

माता-पिता इस बात का भी ध्यान देना होगा कि बच्चे के सामने झगड़ा न करें। एक-दूसरे को सम्मान दें। बच्चा आपसे ही रिश्तों की परिभाषा, व्यवहार सीखता है।

3. दूसरे बच्चों से तुलना करते हुए ताना न मारें

कभी भी अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से न करें। ये न कहें कि ‘देखो, वो पढ़ाई के साथ-साथ म्यूजिक भी सीख रहा है और तुम दिन भर सोते रहते हो।’ आपको लगता होगा कि आप उसे दूसरे बच्चे की तारीफ कर के प्रेरित कर रहे हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल आप उसे ताना मार रहे होते हैं, जो गलत है।

आप अगर चाहते हैं कि बच्चा पढ़ाई के साथ-साथ कोई एक्टिविटी में भी भाग लें तो आप उसे उस एक्टिविटी के फायदे बता सकते हैं। ये समझा सकते हैं कि इसे सीखने से तुम्हें बहुत मजा भी आने वाला है। तुम भविष्य में ये कर सकते हो। बस ध्यान दें कि आप उसे जबरदस्ती न करें, दबाव न डालें। आप पहले ये चेक कर लें कि उसकी रूचि किस एक्टिविटी में हैं। उसी में उसे डालें।

4. रोज करवाएं सेल्फ अफरमेशन

बच्चों को सेल्फ अफरमेशन (आत्मपुष्टि) करना सीखाएं। उदाहरण के तौर पर उनके लिए कुछ लाइनें तैयार करें और रोज आइने के सामने या यूं ही कोई एक्टिविटी करते हुए उन्हें वो लाइनें दोहराने को कहें। विदेशों में यह तकनीक काफी पैरेंट्स इस्तेमाल करते हैं। वे बच्चों को दोहराने को कहते हैं कि ‘मैं बहुत सुंदर हूं… मेरा डस्की स्कीन कलर बहुत अच्छा है… मैं हेल्दी और फिट हूं… सभी टीचर्स मुझसे प्यार करते हैं… मेरे सारे दोस्त मुझे चाहते हैं… मैं दयालू हूं… मैं सब की मदद करती हूं…।

इस तरह की लाइनें रोजाना बच्चों से कॉन्फीडेंस के साथ बुलवाने से उन्हें भी इन बातों पर यकीन होगा। उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। फिर जब कोई उनकी स्कीन, कलर या किसी भी चीज का मजाक उड़ायेगा, उन्हें छोटा दिखाने की कोशिश करेगा, तो उन पर इसका कोई असर नहीं होगा।

5. कॉम्पीटिशन में भाग लेने को करें मोटिवेट

बच्चों को स्कूल में, सोसाइटी में, कॉलोनी में हर जगह होने वाली एक्टिविटी में भाग लेने के लिए मोटिवेट करें। उन्हें बताएं कि पार्टिसिपेट करना ज्यादा मायने रखता है, जीतना नहीं। इस बात का ध्यान रखें, बच्चों को ऐसा करने के लिए आपको जबरदस्ती नहीं करना है। उन्हें उनकी पसंद की एक्टिविटी खुद चुनने दें। उन्हें यकीन दिलाएं कि अगर वे कुछ गलत भी परफॉर्म करेंगे, तो कोई उनका मजाक नहीं उड़ायेगा। आपने उसमें भाग लिया, यही बहादुरी का काम है।

बच्चा कॉम्पीटिशन में सबसे खराब परफॉर्म भी करे, तो भी आपको उसकी तारीफ करना है और उसे प्राइज देना है। ये सारी चीजें उसका आत्मविश्वास जरूर बढ़ायेंगी। धीरे-धीरे वह खुद एक्टिविटी में भाग लेने लगेगा। उसका स्टेज फीयर खत्म होगा। हार का डर खत्म होगा। उसे हर बार बेहतर करने के लिए मोटिवेशन मिलेगा। ये सब उसके भविष्य में बहुत काम आयेगा।

6. बच्चे के सामने ही दोस्तों से न करें बच्चे की बुराई

जब भी दो सहेलियां अपने-अपने बच्चों के साथ मिलती हैं, तो वे बच्चों के सामने ही बच्चों की बुराई करने लगती हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि इस बात कर गौर करें कि बच्चा उस वक्त पास में न हो। खासतौर पर बच्चे की बुराई बच्चों के सामने बिल्कुल भी न करें।

इस तरह की बातें कभी भी न कहें कि मेरा बच्चा रात को इतनी बार सू-सू करने उठता है कि मेरी नींद नहीं होती। वो तो कुछ खाता ही नहीं है। दिनभर वीडियो गेम खेलता रहता है। मैं तो उसकी आदतों से परेशान हो गयी। न जाने स्कूल कब खुलेंगे.. वगैरह।

बच्चे ये सब बातें सुनते हैं। उन्हें लगता है कि मम्मी को मुझ पर गर्व नहीं है। वो मुझसे परेशान है। मुझसे पीछा छुड़ाना चाहती है। मुझे प्यार नहीं करती है। उन्हें मुझ पर शर्म आती है। इन बातों का असर बच्चों की पर्सनालिटी पर पड़ता है। इसलिए हमेशा बच्चों की तारीफ ही करें, ताकि उन्हें यकीन हो कि आपको उन पर गर्व है। आप उन्हें प्यार करते हैं।

7. बार-बार दोहरा कर दिमाग में वो बात भरे नहीं

बच्चे ने अगर कोई सब्जी नहीं खायी, तो ये न समझें कि उसे यह सब्जी पसंद ही नहीं। साथ ही घरवालों के सामने बार-बार न कहें कि उसे फलां सब्जी पसंद ही नहीं। हो सकता है कि वो सब्जी आप जिस तरह से बनाती हैं, वो उसे पसंद न हो, लेकिन किसी और के घर में अगर वो सब्जी बने तो वो खा भी लें।

उदाहरण के तौर पर जब आप बार-बार कहती हैं कि उसे भिंडी पसंद नहीं, तो उसके दिमाग में भी यह बात फिट हो जाती है कि उसे भिंडी पसंद नहीं। आप भी घर में भिंडी बनाना बंद कर देती हैं कि बच्चे को पसंद नहीं तो क्यों बनाना। फिर वो बच्चा कहीं भी, कभी भी भिंडी ट्राय ही नहीं करता, क्योंकि उसके दिमाग में तो आपने बोल-बोल कर भर ही दिया है कि उसे भिंडी पसंद नहीं। फिर वो उसे क्यों खाएगा? आपको उसके सामने यही कहना है कि वह तो सारी सब्जियां खाता है, उसे भिंडी भी बहुत पसंद है।


इन बातों का भी रखें खास ध्यान

  • बच्चे तोतली भाषा में बात करें तो अच्छा लगता है, लेकिन अगर आप भी उसके साथ तोतली भाषा में बोलने लगे तो वो कभी भी सही शब्द नहीं सीख पायेगा। इसलिए वे भले ही गलत शब्द बोलें, आप हमेशा उस शब्द को सही ही बोलें।
  • बच्चों के सामने क्राइम, रेप, डिवोर्स, जैसे विषयों पर बात न करें।
  • नहीं, मत करो, नो… जैसे नेगेटिव शब्दों की बजाय पॉजीटिव तरीके से अपनी बात कहें। उदाहरण के तौर पर अगर बच्चा अंगुठा चूसता है तो यह ने कहें ‘मुंह में अंगूठा मत डालो’। इसकी जगह कहें ‘अंगूठे को मुंह से निकालो’। दोनों बातों का मतलब एक ही है, लेकिन एक नेगेटिव फीलिंग देती है और दूसरी कोई काम करने को कहती है।
  • बच्चों को डराने के लिए ये न कहें कि पुलिस पकड़ के ले जायेगी.. बुढ़ा बाबा उठा लेगा.. या अंधेरे में भूत है…। इस तरह आप उसे खुद डरना सीखा रहे हैं। बेहतर तो यह है कि अगर आपको खुद को भी अंधेरे से, भूत से डर लगता है तो भी ये बच्चे के सामने जाहिर न होने दें।