झगड़े व बहस को बढ़ने से कैसे रोकें?

झगड़े व बहस को बढ़ने से कैसे रोकें?

झगड़ा हर रिश्ते में होता है। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जहां प्यार इतना ज्यादा होता है कि झगड़ा थोड़ी देर भी नहीं टिकता, लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जहां छोटा-सा झगड़ा भी चिंगारी का काम करता है और रिश्ता हमेशा के लिए टूट जाता है।

कई बार ऐसे झगड़े भी होते हैं, जो वैसे तो बड़ी आसानी से सुलझ सकते हैं, लेकिन हमारी थोड़ी-सी नासमझी उसे और बढ़ा देती है। राई का पहाड़ बन जाता है। रिश्तों में खटास पैदा हो जाती है, जो हमेशा कायम रहती है।

आज हम आपको कुछ ऐसी ही गलतियां बता रहे हैं, जो हम आमतौर पर झगड़े के दौरान हम करते हैं। हम आपको उपाय भी बतायेंगे ताकि झगड़े की स्थिति ही पैदा न हो और झगड़ा होने पर आप रिश्तों को बचाते हुए उनसे अच्छी तरह निपट सकें।

1. गुस्से पर कंट्रोल करें

झगड़ा भले ही छोटा हो, लेकिन उसे बड़ा बनाता है हमारा गुस्सा। अगर हम अपने गुस्से पर कंट्रोल कर लें, तो ऐसा समझ लें कि आधा झगड़ा सुलझ गया। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गुस्सा एक ऐसी कमजोरी है, जिसमें आपका जुबान पर काबू नहीं रहता। आप ऐसी-ऐसी बातें बोल जाते हैं, जो आपको नहीं बोलनी चाहिए। इससे सामनेवाले को इतनी गहरी चोट लग जाती है कि वह झगड़ा सुलझाने की बजाय रिश्ता ही तोड़ देता है।

आपको भी गुस्सा शांत होने के बाद अफसोस होता है और आप सोचते हैं कि काश मुझे गुस्सा ना आया होता, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तीर कमान से निकल चुका होता है। इसलिए बेहतर है कि जब भी झगड़े की स्थिति पैदा हो और आपको लगे कि गुस्सा आ रहा है, आपके आसपास के लोग भी आपको कहें कि गुस्सा मत करो, शांत रहो, तो तुरंत गहरी-गहरी सांसें लें। मन ही मन गिनती गिनें। हो सके तो उस वक्त उस जगह से चले जाएं ताकि माहौल ठंडा हो जाये

याद रखें कि गुस्सा करके हम सामनेवाले को दबा देते हैं। इस तरह वह अपनी बात रख नहीं पाता और आपको झगड़े की असली वजह, उसकी जड़ का पता नहीं चलता। इससे झगड़ा सुलझता नहीं, बस आप सामनेवाले को डरा कर उसे दबा देते हैं, जो बाद में नुकसान पहुंचाता है।

2. बोलने के पहले सोचें कि क्या बोल रहे हैं

कई बार झगड़े के दौरान हम आवेश में कुछ ऐसे निर्णय ले लेतें हैं, जो हमें नहीं लेने चाहिए। जैसे की तलाक लेने की बात कह देना..। घर के बंटवारे की बात कह देना..। मर भी जाऊं तो शक्ल नहीं देखूंगा…, मेरे घर से निकल जाओ… इस तरह की बातें।

ये सब बहुत बड़े निर्णय हैं। ये यूं ही झगड़े के दौरान बोलने नहीं चाहिेए। वैसे यह बात भी गुस्से से ही जुड़ी है, लेकिन कई लोग गुस्से में ये सब न बोलकर भावुक होकर भी बोल जाते हैं। वे इतना हर्ट होते हैं कि उनके मुंह से ये सब निकल जाता है। इसलिए झगड़ा हो तब भी अपनी सोचने-समझने की क्षमता पर काबू रखें। बोलने के पहले सोचें कि हम क्या बोल रहे हैं।

3. अपनी टोन का खास ख्याल रखें

झगड़े के वक्त लोगों की टोन एकदम बदल जाती है। कुछ की आवाज बढ़ जाती है। कुछ ताना मारने लगते हैं। कुछ की आवाज कठोर हो जाती है। कुछ व्यंग्यात्मक हो जाते हैं। कुछ लोग सामनेवाली की आवाज की, उसकी कही लाइन की मिमिक्री कर उसे और परेशान करते हैं। उसकी हर बात की खिल्ली उड़ाते हैं।

इस तरह की गलती कभी न करें। सामनेवाले की बातों को शांति से सुनें। उन्हें बोलने दें। जब उनकी बात पूरी तरह सुन लें। उनके मुद्दे को समझ लें, तब उसके अनुसार जवाब विनम्रता से दें।

4. खुद को सामनेवाले की जगह रख कर सोचें

जब भी झगड़ा होता है तो हम सामनेवाले को दोष देने लगते हैं। उसने ऐसा किया, उसको ऐसा नहीं करना चाहिए था…। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सामनेवाले पर सारा कसूर मढ़ देने से पहले खुद को उनकी जगह रख कर सोचें कि अगर उनकी जगह आप होते और आपके साथ ऐसा कोई करता, तो आप क्या करते? अगर आपका जवाब उनके किए गये से विपरित है तो आप सही हैं। आप उन्हें बात कर के समझाएं, लेकिन आप ये प्रयोग करके पायेंगे कि कई मामलों में आप भी उनकी तरह ही रिएक्ट करते।

बस याद रखें कि बड़ी ईमानदारी से खुद को उनकी जगह रख कर सोचें। ये भी बात याद रखें कि हर व्यक्ति अलग होता है। उसकी सहन करने की क्षमता अलग होती है। कोई किसी बात को लेकर भावुक होता है, कोई जल्दी बुरा मान जाता है। इन सब बातों को भी जहन में रखें।

5. इस बारे में हम बात नहीं करेंगे

कई लोगों की आदत होती है कि जिस विषय पर झगड़ा हो रहा होता है, वे उसे सुलझाने की बजाय उस विषय पर चर्चा से भागते हैं। वे उस विषय पर बात ही नहीं करना चाहते। कोई बात छेड़े तो कह देते हैं कि मुझे उस विषय पर बात नहीं करनी। यह बात यहीं पर खत्म। कुछ छोटे-मोटे मामले या घटनाएं ऐसी होती हैं, जिस पर बात कर हम उसे सिर्फ बढ़ाते हैं, इसलिए ‘बीती बातों पर मिट्‌टी डालो और आगे बढ़ो’, ये तर्क देकर उन बातों को खत्म करना ठीक है।

लेकिन हर बार यह फंडा काम नहीं आता। कई गंभीर मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें बिना बात किये खत्म करना ठीक नहीं। उन पर बात न करके आप झगड़ा सुलझा नहीं रहे होते, बल्कि आप चिंगारी को दबाने की कोशिश कर रहे होते हैं, जो बाद में आग की बड़ी लपटें बनकर घर जला देती हैं। इसलिए झगड़े को बातचीत से सुलझाएं।

इन बातों का जरूर ख्याल रखें

  • पुराने झगड़े जो उस वक्त सुलझ चुके थें, उन्हें दोबारा झगड़े में न घसीटें
  • कभी भी कुतर्क न करें। तर्क सोझ-समझकर दें।
  • झगड़े के बीच में शारीरिक संरचना, किसी शारीरिक कमी को कभी भी बीच में न लाएं।
  • झगड़ा जिस इंसान से हो रहा है, उसके बारे में ही बात करें। उसके परिवार के अन्य सदस्यों को बीच में न लाएं। उन पर कोई कमेंट न करें।
  • कभी भी हमले के अंदाज में जवाब न दें। आपको एक आरोप का दूसरे आरोप से सामना नहीं करना चाहिए।
  • झगड़े के दौरान अगर लगे कि कुछ गलती आपकी भी थी, तो उस गलती की माफी मांग लें। हो सकता है कि सामनेवाला भी माफी मांग ले और झगड़ा खत्म हो जाये। कहने का मतलब ये है कि इगो को बीच में न लाएं।