जब दूसरों पर गुस्सा आये तो क्या करें?

जब दूसरों पर गुस्सा आये तो क्या करें?

हम कितना भी लोगों से रिक्वेस्ट करें कि आप ऐसे नहीं, ऐसे करें। वो वही करते हैं, जो उन्हें करना होता है। वो हमारी बात सुनते ही नहीं। तब हमें गुस्सा आता है, तकलीफ होती है। हम उन्हें बार-बार कहते हैं कि ‘आपको ये बात समझ क्यों नहीं आती। हम आपके अच्छे के लिए बोल रहे हैं।’ लेकिन वो सुनते हैं, स्माइल करते हैं और वही करने लगते हैं, जो वो कर रहे थे। हमारी तकलीफ और बढ़ जाती है।

ब्रह्माकुमारी सिस्टर शिवानी ने इस विषय को बहुत अच्छे से समझाया है। वे कहती हैं कि इन सब बातों के पीछे एक रहस्य है और जब आप यह रहस्य समझ जाते हैं, तो मन प्रश्न करना बंद कर देता है।

दोस्तों, हम सबने एक शब्द सुना है ‘आत्मा’। हम बातचीत में, दिमाग में ये बार-बार कहते हैं कि ये मेरा पति है, ये मेरी पत्नी है, ये मेरा बच्चा है, ये बहू है...लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि इन सब से पहले ये ‘आत्मा’ है। जब हम ये याद रखेंगे कि ये आत्मा है, तो परेशानी हल हो जायेगी, क्योंकि जब ये याद रहा कि ये आत्मा है, तो ये भी याद रहेगा कि मैं आत्मा आज इस शरीर में हूं। ये मेरा देश है, ये प्रांत है, ये परिवार है, ये जीवन की परिस्थितियां है और ये मेरे संस्कार हैं। लेकिन इससे पहले मैं आत्मा किसी दूसरे कॉस्च्युम में थी। तब मेरा देश अलग था, प्रांत अलग था, परिवार अलग था, परिस्थितियां अलग थीं।

मान लें कि आज हमारे शरीर की उम्र 50-60 है, तो आत्मा की आयु कितनी है? इसकी तो कोई आयु ही नहीं होती, क्योंकि आत्मा तो अजर, अमर, अविनाशी है। जब हम कहते हैं कि वो मर गया, तो इसका अर्थ ये होता है कि वह शरीर मरा। आत्मा ने वो शरीर छोड़ कर दूसरा शरीर ले लिया। आज वो इस शरीर में है, तो उसके पहले दूसरे शरीर में थी। उसके पहले किसी और शरीर में थी। ऐसे न जाने कितने शरीर आत्मा ने छोड़े हैं। और सभी शरीर में रहते हुए उस आत्मा ने परिस्थितियों के अनुसार कुछ संस्कार पाएं हैं।

अब ये मान लो कि आत्मा एक सीडी की तरह है। अब चेक करें कि इस सीडी में कितने गाने हैं। यहां गाने से मतलब हर जन्म से हैं। आप पायेंगे कि हर गाना अलग-अलग है, क्योंकि सभी जन्मों में आपकी परिस्थितियां, देश, परिवार अलग-अलग थे। अब आप समझ सकते हैं कि जब हमारी खुद की सीडी में सारे गाने एक से नहीं हैं, तो दूसरे की सीडी से हमारे गाने मैच कैसे करेंगे? अब आप देखो कि दो सीडी की शादी हो जाती है। दोनों सीडीज आपस में झगड़ती हैं कि तुम ऐसे क्यों हो? तुम वैसे क्यों हो? दोनों चाहते हैं कि सामनेवाले की सीडी में अपनी पसंद का गाना बजे, जो कि मुमकिन नहीं है। इसके बावजूद हम पूरी जिंदगी दूसरे की सीडी में अपना गाना फिट करने में लगे रहते हैं।

अब यहां जब दो सीडीज एक-दूसरे को बदलने की छोटी-छोटी मेहनत कर रही थी तो घर में तीसरी सीडी का जन्म हो जाता है। दोनों सीडी सोच रही थी कि घर में तीसरी सीडी जो आयेगी, वो ब्लैंक सीडी होगी। हम उसमें ये गाना लिखेंगे, वो गाना लिखेंगे, लेकिन क्या आपके घर में ब्लैंक सीडी आयी? नहीं। उस सीडी के अंदर पहले से ढेर सारे गाने भरे थे। उसके पिछले जन्मों के। उसके संस्कार अलग थे। तभी तो जब बच्चा जन्म लेता है, तो पंडित जी आपको उसकी जन्मपत्री दे देते हैं। दरअसल वो जन्मपत्री ही उस आत्मा की पिछली सारी यात्राओं का ब्योरा होती है। उन्हीं यात्राओं, कर्मों के आधार पर नयी सीडी कर्म करती है और उसे फल मिलता जाता है और आपको अपने बच्चे पर बेवजह गुस्सा आता है कि ये मेरी नहीं सुनता। मेरे कहे अनुसार काम या व्यवहार नहीं करता।

इस बात को हमेशा याद रखें और जब भी कोई हमारे मन मुताबिक काम न करे, उस पर गुस्सा होने की बजाय, उसे एक इंसान के रूप में देखने के बजाय एक आत्मा के रूप में देखें। उसे उसके पिछले जन्मों के संस्कारों के हिसाब से काम करने दें।

दूसरों की जगह खुद को रख कर देखें

‘गुस्सा किस बात पर आता है?’ अपने मन के अनुसार जब सामनेवाला काम नहीं करता, तब आता है। उदाहरण के तौर पर अगर हमारी बाई हमारे अनुसार काम न करे, तो हमें गुस्सा आता है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब हमारे खुद के बच्चे हमारी तरह नहीं है, हमारे अनुसार व्यवहार नहीं करते, तो बाई से हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो बिल्कुल हमारे विचारों के अनुरूप काम करेगी। हमें समझना होगा कि सब के संस्कार, सबकी परिस्थितियां सोच अलग-अलग होती है। हो सकता है कि बाई का पति बीमार हो या उसकी नौकरी चली गयी हो। हो सकता है कि वो अपने छोटे बच्चे को अकेला छोड़ कर आती हो। ऐसे में उसके दिमाग में कितनी सारी चीजें चल रही होती हैं। इन परिस्थितियों में जब आप उसे डांट देते हैं, तो उसे कैसा लगेगा? वह कितनी देर उदास रहेगी? एक दिन, दो दिन, एक महीना। ये भी देखें कि जब आपने किसी को डांटा, तो आपको दिनभर उस इंसान से बदले में क्या मिलेगा, दर्द, नफरत और गुस्सा। यानी नेगेटिव एनर्जी। वहीं अगर आपने उन्हें उनकी गलती को प्यार से समझाया, तो बदले में क्या मिलेगा सम्मान, प्यार, दुआएं यानी पॉजीटिव एनर्जी...’

चीजों को स्वीकार कर लेंगे, तो मन डिस्टर्ब नहीं होगा

आपका पड़ोसी सुबह-सुबह कोई गाना बजा रहा है। आपके पास कितनी चॉइस है? पहला, उनके घर जाकर बोलें कि गाना बंद कर दो। वो पड़ोसी गाने की आवाज और बढ़ा देगा। अब दूसरी चॉइस, आप उससे भी ज्यादा तेज अपना गाना बजाने लगो। यानी वो गुस्सा करते हैं, तो आप उससे डबल गुस्सा करो। अब सोचो कि किसका नुकसान ज्यादा होगा? तीसरा और सबसे सरल ऑप्शन, जिससे हमारी शक्ति बच जायेगी। ‘उनके म्यूजिक को एन्जॉय करना शुरू कर दो।’ यानी कि जिन चीजों को हम स्वीकार करते हैं, वो हमारे मन को डिस्टर्ब नहीं करती

दोस्तों, सभी का काम करने का तरीका अलग-अलग है। किसी को भी अपने जैसा बनाने की कोशिश न करें। अपने दिमाग को यह समझा दें। अगर आप ये तय कर लें कि दूसरों को चेंज करने की कोशिश आप नहीं करेंगे, तो आपकी बहुत सारी ऊर्जा बच जायेगी। याद रखें, "दूसरों को समझा नहीं जा सकता, लेकिन स्वीकार किया जा सकता है।"