गृहणियों को ये चीजें नहीं करना चाहिए

गृहणियों को ये चीजें नहीं करना चाहिए

इन दिनों अनुपमा सीरियल महिलाओं का नंबर वन सीरियल बन गया है। इसकी वजह यही है कि सभी गृहणियां खुद को सीरियल की नायिका अनुपमा से जुड़ा हुआ महसूस करती हैं। और भला क्यों न महसूस करें। सभी अनुपमा की तरह ही घर की देखभाल करती हैं। सास-ससुर, पति, बच्चों का ख्याल रखती हैं। उनकी छोटी-बड़ी सभी चीजों को बिना मांगे उन तक पहुंचा देती हैं। वे सभी यह सब खुशी-खुशी करती हैं, लेकिन दिक्कत तब आती है जब उन्हें उनके लिए कुछ करने की इच्छा होती है, सहेलियों के साथ कहीं बाहर जाना होता है, खुद की पहचान बनाने के लिए वो कोई एक्स्ट्रा काम करना चाहती हैं या बीमार हो जाती हैं। ऐसी परिस्थिति में भी घरवाले कोई सपोर्ट नहीं करते। सभी काम अनुपमा की तरह अन्य गृहणियों को ही करने पड़ते हैं। खुद की खुशी के बारे में सोचने से पहले उन्हें ये चिंता सताती है कि घर का काम कौन करेगा? शाम की चाय कौन बनायेगा? खाना कौन बनायेगा? दवाई कौन देगा? वगैरह… वगैरह…।

दूसरों को खुद पर डिपेंड करना गलत

अगर आप भी अनुपमा की ही तरह हैं और सोचती हैं कि घर के सारे कामों का बोझ अपने सिर पर लेकर आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं, तो यह आपकी गलतफहमी है। ऐसा करके आप न सिर्फ अपना नुकसान कर रही हैं, बल्कि घर के अन्य सदस्यों को भी आत्मनिर्भर बनने से रोक रही हैं

हद से ज्यादा काम की आदत एक तरह की बीमारी

कई महिलाओं को घर के काम करने की इतनी ज्यादा आदत हो जाती है कि वे घर का काम दूसरे के हाथों से किया पसंद ही नहीं करती। उन्हें तब तक संतुष्टि नहीं मिलती, जब तक वो काम वो खुद न कर लें। वे बड़े गर्व से कहती हैं कि ‘मुझे तो भई मेरे हाथ की सब्जी ही अच्छी लगती हैं।’ ‘मुझे तो बाई के हाथ से धूले हुए बर्तन जमते ही नहीं, कितना खराब धोती है वो।’‘ रहने दे बेटा, तू रोटियां मत बना, तेरी रोटियां थोड़ी मोटी होती है न, तेरे पापा को ऐसी रोटी नहीं चलती।’

इस तरह बाकि लोग अगर कोई काम में मदद करना चाहें या काम करने को मौजूद भी हों, तो वे उन्हें रोक देती हैं। यह बहुत गलत आदत है। बड़ी कमी है। ऐसी महिलाएं घर को इतना साफ-सुथरा रखती है कि होटल लगने लगता है। जब घर में कोई थोड़ी सी भी फेरबदल कर देता है, चीज गलत जगह छोड़ देता है, बिगाड़ देता है तो वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं। गुस्सा करती हैं। ये एक तरह की बीमारी है, हर चीज परफेक्ट करने की।

पति व बच्चों को भी बनाएं इंडिपेंडेंट

बच्चों का स्कूल ड्रेस प्रेस करके तैयार, नाश्ता टेबल पर, बैग में टिफिन, जूते पॉलिश। पति के नहाने के लिए बाथरूम में पानी, कपड़े निकाल कर बेड पर, वॉलेट, घड़ी, रुमाल, मोजे, टिफिन, फोन सब हाथ में। घर पर भी रहें तो खाना, चाय, नाश्ता देना, फिर प्लेट्स, कप उठाकर ले जाना। कपड़े फोल्ड कर अलमारी में जमाना। यानी कि पति व बच्चों का हर काम खुद करना। वो एकदम किसी जगह के बादशाह जैसे बैठे हैं, हुकुम चला रहे हैं कि पानी लाना… चार्जर लाना…।

अगर आप इस तरह उनके हर छोटे-छोटे काम करती हैं और सोचती हैं कि मैं बहुत अच्छी मां व पत्नी हूं, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। आपने अपने पति व बच्चों की आदत बिगाड़ी है। आपका फर्ज है कि उन्हें उनके पर्सनल काम खुद करने दें। ताकि वे भी आप पर पूरी तरह डिपेंड न रहें। आप बीमार हों, कहीं बाहर जाएं तो वे आपकी गैरमौजूदगी में परेशान न हों कि ये काम तो मुझे आता ही नहीं। ये चीज कहां रखी, मुझे पता ही नहीं। ऐसे में अगर बच्चे पढ़ाई या जॉब के लिए या शादी के बाद ससुराल जाते हैं, तो उन्हें वहां बहुत परेशानी उठानी पड़ती है, क्योंकि काम करने की आदत बिल्कुल भी नहीं होती। तब उन्हें रोना आता है और वे सिर्फ मां को कोसते हैं कि काश उन्होंने हमें काम करने दिया होता। सिखाया होता। स्पून फिडिंग नहीं की होती।

खुद पर डिपेंड करती है ताकि सब पर राज कर सकें

कई समझदार पत्नियां अपने पतियों को जान-बुझकर खुद पर इतना निर्भर करती है कि उनके बिना पति का काम ही नहीं चले। पति को बाहर जाना है, तो वो अपना सूटकेस नहीं जमा सकते। खाने की थाली खुद से परोस नहीं सकते। वॉशिंग मशीन में कपड़े धोना नहीं जानते, माइक्रोवेव में खाना कैसे गरम होता है, वो नहीं जानते। इस तरह पति को पूरी तरह खुद पर निर्भर कर पत्नियां एक तरह से उन पर राज करती है। फिर पतियों को उनकी हर बात माननी पड़ती है क्योंकि पता है कि पत्नी नाराज हो गयी, तो मेरा कोई भी काम नहीं हो पायेगा

उनके भविष्य की खातिर बेसिक काम जरूर सिखाएं

गृहणियों की जिम्मेदारी है कि घर के सदस्यों को बेसिक काम भी सिखाएं ताकि उन्हें भविष्य में, इमरजेंसी में परेशानी न हो। उन्हें बच्चों और पति को मैगी, पोहा, सैंडविच, आटा गूथ कर पराठा बनाना सिखाएं। पराठे का शेप कैसा भी हो, बस खाने लायक हो तो भी चलेगा। दाल-चावल कूकर में बनाना, खिचड़ी बनाना सिखाएं। जब भी इन चीजों को आप बनाएं, बच्चों को किचन में बुलाएं। उन्हें कहें कि वो आपको देखें कि आप कैसे बना रहे हो। उन्हें गाइड करें। प्याज वगैरह काटने में उनकी मदद लें। इससे उनकी रूचि खाना बनाने में भी जगेगी। सब्जी की बेसिक रेसिपी भी उन्हें आनी ही चाहिए। इमरजेंसी में ये सीख उनके जरूर काम आयेगी और वो फिर आपको कोसेंगे नहीं

विदेशों में सब खुद करते हैं अपना काम

विदेशों में पुरुष भी खाना बनाते हैं, सफाई करते हैं, बर्तन मांजते हैं। पति-पत्नी सभी काम मिलकर करते हैं। यहां तक कि भारत के पुरुष भी जब विदेश में जाकर रहते हैं, तो वहां काम करना सीख जाते हैं। बर्तन मांजने लगते हैं। चीन में बच्चे स्कूल के टॉयलेट की सफाई, स्कूल की सफाई खुद करते हैं। ये उनकी पढ़ाई का ही हिस्सा है। वहां उन्हें बेसिक काम करना सिखाया जाता है। साफ-सफाई रखना, खुद तैयार होना, कचरा डस्टबिन में डालना, जूते पॉलिश करना जैसे सारे काम छोटे-छोटे बच्चे खुद करते हैं।

हो सकता है कि शुरुआत में आपको ये अजीब लगे कि इतने छोटे बच्चों से खुद का काम क्यों करवाना। मैं किस काम की? लेकिन यकीन मानिए, ये उनके लिए सही है। आप उन्हें गाइड करें। उनके साथ हमेशा मौजूद रहें। धीरे-धीरे वो सीख जायेंगे।

ये काम बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी आने चाहिए

  • रोज सुबह अपना बिस्तर घड़ी करना। बेड जमाना
  • बाथरूम में गरम पानी रखना। गीजर चालू करना। (बच्चों के लिए नहीं)
  • कपड़े प्रेस करना (बच्चे नहीं), जूते पॉलिश करना।
  • उठकर पानी पीना, चाय-कॉफ़ी बना कर पी लेना।
  • खाना गरम कर खुद के लिए थाली सजा लेना।
  • खाना, नाश्ता हो जाये तो अपनी प्लेट्स उठाकर खुद वॉश बेसिन में रखना। हो सके तो बर्तन साफ भी कर के रखना।
  • खेलना हो जाये तो खिलौनों को वापस अपनी जगह पर रखना। रूम साफ रखना।
  • घर में छोटा बच्चा है तो उसका डाइपर बदलना, उसकी सफाई करना, खाना खिलाना, उसे दूध बना कर देना।
  • बाजार से सब्जी लाना, घर का सामान लाना।