‘डिजिटल डिटॉक्स’ अभी ज्यादा जरूरी

‘डिजिटल डिटॉक्स’ अभी ज्यादा जरूरी

एक परिवार देखें। ‘कॉलोनी में लाइट नहीं है। पूरा परिवार हवा खाने के लिए बालकनी में बैठा है। रीना मोबाइल में फेसबुक देख रही हैं। उसके पति व्हॉट्सएप्प पर आये मैसेज पढ़ रहे हैं। बेटी अपनी फेवरेट वेब सीरीज खत्म करने में लगी हुई है और बेटा कैंडी क्रश खेल रहा है। घंटा भर हो गया है, लेकिन किसी ने एक-दूसरे से कोई बात नहीं की है।’

यह सीन अब हर घर का हो गया है। कोराना काल में स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि बंद हैं। परिवार के सभी लोग घर पर ही हैं, इसके बावजूद किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं। सभी अपने में बिजी हैं। इसकी वजह है इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस व इंटरनेट। लोगों को इसकी इतनी लत लग गयी है कि वे अपनों से भी कट गये हैं।

बच्चे ऑनलाइन क्लासेज की वजह से तो मोबाइल, लैपटॉप के सामने रहते ही हैं। इसके अलावा भी कई घंटे इंटरनेट पर बिताते हैं। घर के बड़े भी वर्क फ्रॉम होम के चलते घंटों लैपटॉप पर काम करते हैं। इसके बाद सोशल साइट्स, यूट्यूब, मूवीज, वेब सीरीज को देखते हुए घंटों इसमें लगे रहते हैं। देखा जाये तो हर व्यक्ति 24 घंटे में से 10 से 12 घंटे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के साथ बिता रहा है। यह न सिर्फ इन्हें लोगों से दूर कर रहा है, बल्कि सेहत को भी नुकसान पहुंचा रहा है, इसलिए अब समय आ गया है डिजिटल डिटॉक्स का।

क्या है डिजिटल डिटॉक्स?

चूंकि डिजिटल का मतलब है इलेट्रॉनिक उपकरण और डिटॉक्स का मतलब है शरीर में जमे विषैले पदार्थों को बाहर निकालना। इसलिए डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है इलेट्रॉनिक्स उपकरणों से दूरी बनाना। ऑनलाइन पढ़ाई, वर्क फ्रॉम होम, गेम्स, वीडियो जैसी वजहों से हम लोग घंटों इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर समय बिता रहे हैं, ये सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है, इसलिए जरूरी है कि उनका डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन किया जाये।

इन लक्षणों से समझें कि डिजिटल डिटॉक्स करना है

बच्चों के लिए : जब बच्चों का स्वभाव बदला-बदला लगे। उदाहरण के तौर पर घंटों बिना कुछ बोले मोबाइल, लैपटॉप में लगे रहें। खाने-पीने का मन न करे। नहाने भी न जाएं। किसी भी बात को लेकर उन्हें समझाओ तो गुस्से में आ जाएं। चीजें फेंकने लग जाएं। रात-रात भर जागें। घरवालों के साथ बैठने की बजाय कमरे में घुसे रहें। सब के साथ होने के बावजूद मोबाइल पर आंखें गड़ाएं रखें। आंखों में जलन हो, पानी आने लगा हो।

बड़ों के लिए : देर रात तक मोबाइल में लगे रहें और सुबह काफी देर से जागे। आंखें लाल हो। जलन हो। आंखों में बार-बार पानी आ रहा हो। दिनभर कमजोरी व थकान लगे। घरवालों से बात न करें। सिर्फ काम की बात ‘हां’ ‘ना’ में करें। खाना खाते वक्त भी एक हाथ से मोबाइल चलाएं। कोई बात कर रहा हो तो उसकी तरफ न देखें। कोई भी काम बोले तो वो काम करना भूल जाएं। मोबाइल हमेशा चार्जिंग पॉइन्ट पर या पावर बैंक पर लगाए हुए रखें।

कैसे करें डिजिटल डिटॉक्स?

  1. बच्चों को समझाएं कि डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन क्यों जरूरी है? इसके क्या नुकसान हैं। जब बच्चों को यह बात समझ आ जाएगी, तो वे खुद डिजिटल डिटॉक्स करना शुरू कर देंगे.
  2. अपने फेसबुक, व्हाट्सएप और मेल नोटिफिकेशन के ऑप्शन बंद कर दें। ऐसा करने से आपका ध्यान नोटिफिकेशन पर नहीं जाएगा और आप बार नोटिफिकेशन चेक नहीं करेंगे।
  3. पैरेंट्स अगर बच्चों को इनका इस्तेमाल करने से मना करेंगे और खुद करेंगे, तो ये गलत होगा। बच्चों के लिए प्रेरणा बनें। खुद भी इनका इस्तेमाल न करें।
  4. बच्चों को दिनभर में केवल 2 घंटे ऑनलाइन क्लासेज के लिए ही इन चीजों का इस्तेमाल करने दें।
  5. बड़े भी केवल ऑफिस के काम के लिए इन्हें इस्तेमाल करें।
  6. ऐसा भी कर सकते हैं कि हफ्ते में दो दिन ‘डिजिटल डिटॉक्स’ के लिए फिक्स करें। इन दो दिनों में घर का कोई भी सदस्य इलेक्ट्रॉनिक चीजों का इस्तेमाल नहीं करेगा। बस इमरजेंसी में ही करेगा।
  7. बच्चों को टाइम पास करने के लिए दूसरी चीजें सिखाएं।
  8. बच्चों से बातें करें। उनके साथ गेम्स खेलें। उन्हें अपने बचपन के मजेदार किस्से सुनाएं।
  9. बुक्स में से कहानी पढ़ कर सुनाएं। उन्हें बुक पढ़ने की आदत डालें। बुक पढ़कर उसका रिव्यू लिखकर देने को कहें।
  10. घर में ही बच्चों को तरह-तरह के विषयों पर निबंध, कहानी लिखकर देने को प्रेरित करें। जब वे ऐसा कर लें तो उन्हें पुरस्कार स्वरूप कुछ भी दें।
  11. बच्चों को ड्रॉइंग, गार्डनिंग, कुकिंग जैसी हॉबीज में हाथ आजमाने दें।
  12. जब आप ये सब चीजें खुद करेंगे और बच्चों को मदद करने कहेंगे, तो उन्हें भी रूचि आने लगेगी।
  13. घर पर लूडो, कैरम, ताश, चेस, स्टोरी पजल जैसे गेम्स खेलें। कुल मिलाकर बच्चे और बड़े क्वालिटी टाइम बिताएं।
  14. सभी मिलकर तय कर लें कि कोई भी फोन नहीं देखेगा

डिजिटल डिटॉक्स के फायदे-

  • ऐसा करने से पैरेंट्स और बच्चे के बीच बॉन्डिंग मजबूत होती है
  • पति-पत्नी भी आपस में बातचीत करते हैं, तो उनका रिश्ता बेहतर होता है
  • परिवार के साथ मिलकर नयी अच्छी यादें बनाते हैं।
  • आंखें खराब नहीं होती। नींद अच्छी आती है तो पूरे शरीर पर असर पड़ता है।
  • नयी हॉबीज डेवलप होती है। नयी चीजें सीखने को मिलती है।
  • बातचीत से समस्याओं का हल निकलता है, आपसी मिस अंडरस्टैंडिंग क्लियर करने का वक्त मिलता है।
  • कुकिंग, गार्डनिंग, साफ-सफाई, आर्ट एंड क्राफ्ट, राइटिंग, रीडिंग जैसी एक्टिविटीज साथ करने से घर भी सुंदर दिखता है, पर्सनालिटी में निखार आता है। अच्छी डिशेज खाने को मिलती हैं।

एक बात याद रखें, परिवार में ऐसे भी लोग हैं, जो इन चीजों का इस्तेमाल नहीं करते जैसे- दादा-दादी, दिनभर किचन में काम करने वाली मम्मियां। ये सब आपसे बातें करना चाहते हैं, लेकिन आप अपने मोबाइल, लैपटॉप में लगे रहते हैं। इनकी आवाज को अनसुना करते हैं। प्लीज ऐसा न करें।