बच्चों के फ्रेंड नहीं ‘फ्रेंडली पेरेंट’ बनें

बच्चों के फ्रेंड नहीं ‘फ्रेंडली पेरेंट’ बनें

आजकल पेरेंटिंग को लेकर आप कहीं भी कोई भी आर्टिकल पढ़ेंगे या वीडियो देखेंगे तो आपको ये लाइन जरूर पढ़ने या सुनने को मिलेगी कि ‘बच्चों के दोस्त बनें’। कई पेरेंट्स इस बात का गलत अर्थ निकाल लेते हैं और बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार करने लगते हैं कि माता-पिता और बच्चों का रिश्ता अपनी असली पहचान खो देता है। ऐसे में पेरेंट को ये बात समझनी होगी कि हमें बच्चों का फ्रेंड नहीं, बल्कि ‘फ्रेंडली पेरेंट’ बनना जरूरी है। दोनों में अंतर है। आज हम इसी विषय पर बात करेंगे।

ऐसी समस्याओं को न बताएं, जो बच्चे हल नहीं कर सकते

पेरेंट्स पहले इस बात को समझ लें कि बच्चों के पास दोस्तों की कमी नहीं है। वो तो उनके पास बहुत सारे हैं। बच्चों को ऐसे पेरेंट चाहिए जो उन्हें कंफर्ट दें, स्टेबिलिटी दे और सेंस ऑफ सिक्योरिटी दें। दरअसल जब आप बच्चों के साथ ओवर फ्रेंडली हो जाते हैं और उनके साथ अपने रिलेशनशिप इश्यूज, चिंता व डर को शेयर करने लगते हैं तो वे आपका बोझ भी अपने ऊपर ले लेते हैं, जो झेलने की उनकी उम्र नहीं है। ऐसे में जिन समस्याओं का हल उनके पास नहीं, वे नहीं जानते कि इस सिचुएशन को कैसे डील करना है, उन समस्याओं से उन्हें दूर रखें। उनके साथ उन विषयों पर बात न करें क्योंकि वे बच्चे हैं। उनका दिल नाजुक है। इन सारी बातों को सुन वे डिस्टर्ब हो जाते हैं।

ऐसे में ये भी हो सकता है कि वे आपकी किसी समस्या को अपने किसी दोस्त या किसी बाहर वाले से शेयर कर बैठें और उसका फायदा कोई तीसरा व्यक्ति उठाये। परिस्थितियां और भी खराब हो सकती हैं।

बच्चे आपसे डरे नहीं, लेकिन सम्मान जरूर करें

आपको कूल, शांत और रिलेक्स पेरेंट बनना है, जिससे बच्चा बिना डरे, बिना हिचकिचाये अपनी समस्या कह सके। याद रहे कि आपको बच्चे के अंदर से आपके लिए डर निकालना है, लेकिन सम्मान बनाएं रखना है। बच्चा इतना ज्यादा भी आपसे फ्रेंडली न हो जाये कि आपको अबे यार, अरे यार कहे। आपको उल्टा जवाब दे। आपको ताने दे। आपके किसी एक्शन को जज करे। आपको रिलेशनशिप इश्यू पर अपनी राय दे। आपको ये सीमा अपनी बातों से खुद बनानी होगी।

अगर आप अपने स्कूल जाने वाले, कॉलेज जाने वाले बच्चों को छिछोरे दोस्तों की तरह कोहनी मारकर, उन्हें छेड़ते हुए उनके बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड की बातें पूछेंगे तो ये तैयारी भी कर लें कि वे भी आपके साथ ऐसा कर सकते हैं। अगर आप ऐसा इसलिए करते हैं कि बच्चा आपको दोस्त समझकर हर चीज बताये तो पहले ये समझ लें कि उगलवाने का ये तरीका गलत है। आपको अगर उन्हें इस तरह के इश्यूज पर बात करने को तैयार करना है तो इसके लिए मैच्योर तरीके भी होते हैं। कॉन्फीडेंस धीरे-धीरे समझदारी वाली बातों से भी डेवलप होता है। आप उन्हें उदाहरण देकर सही-गलत, अच्छा-बुरा, उनकी लिमिट्स, बच्चों से होने वाली गलतियां आदि समझा सकते हैं। इसके लिए चीप तरीके से बात करने वाले पेरेंट बनने की जरूरत नहीं।

कपल इश्यूज व रिश्तेदारों के झगड़ों से बच्चों को रखें दूर

पत्नियां अपने पति के साथ के इश्यू बच्चों से शेयर नहीं कर सकती। पति अपनी पत्नी के साथ के झगड़े, अनबन बच्चों के साथ बैठकर नहीं सुलझा सकते। आप अपने सास-ससुर, देवरानी-जेठानी, ननद-देवर के साथ होने वाली समस्याओं को बच्चों को नहीं बता सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि वे बहुत छोटे हैं। वे इतने मैच्योर नहीं है कि इन रिश्तों को समझ सकें। कई बार ऐसा होता है कि बड़ों के बीच कुछ समय के लिए रिश्ते खराब हो जाते हैं, लेकिन बाद में सब गलतफहमियां दूर हो जाती हैं, सब ठीक हो जाता है।

ऐसे में बड़े तो आपस में मिल जाते हैं, लेकिन बच्चे वो बातें भूल नहीं पाते। वे उन रिश्तों को दोबारा वैसा प्यार, अपनापन नहीं दे पाते। कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि बड़ों के मनमुटाव को देख बच्चे भी पेरेंट का सपोर्ट करने मैदान में उतर आते हैं और रिश्तेदारों से इतनी बड़ी-बड़ी बातें बोल जाते हैं कि पेरेंट फिर नजरें नहीं मिला पाते। दरअसल बच्चों को पता ही नहीं होता कि झगड़े की गंभीरता कितनी है, किसे क्या बोलना है और क्या नहीं। इसलिए अगली बार बच्चों से किसी से हुए झगड़े के बारे में बात करने से पहले 100 नहीं 1000 बार सोचें।

बातचीत को रखें गरिमामय

बच्चों के साथ हंसी-मजाक करें, जोक सुनाएं, खेलें, पढ़ाई करें, साइकलिंग करें, मूवी देखें, उनके दोस्तों व टीचर्स के बारे में बात करें, रिश्तेदारों के बारे में बात करें, लेकिन इन सब के बीच याद रखें कि आपकी बातों में एक गरिमा हो। भाषा शालीन हो, किसी की बुराई न हो, चीप तरीके से, छिछोरे तरीके से हाथ पर ताली मार-मारकर बात न हो। अबे ओय, अरे यार तू भी… कर के बात न हो। अगर आप बच्चों से दोस्ताना रवैया रखने के लिए ऐसे गलत तरीके अपनायेंगे तो ये भविष्य में आपको बड़ी परेशानी में डालेगा। बच्चे आपकी इज्जत बिल्कुल नहीं करेंगे।

पैसों की तंगी बताकर हद से ज्यादा तनाव न दें

बच्चों को रुपयों का महत्व समझाना जरूरी है। उन्हें ये कहना भी ठीक है कि फलां चीज हम अभी खरीद नहीं सकते, बाद में लेंगे। लेकिन कई बार पैरेंट बच्चों को आर्थिक परेशानियों, गरीबी, नुकसान, तंगी के बारे में इतना सब कुछ बता देते हैं कि बच्चे दबाव झेल नहीं पाते और पेरेंट्स की मदद करने के लिए गलत कदम उठा लेते हैं। पैसे कमाने की कोशिश करने लगते हैं। गलत काम करने लगते हैं। झूठ बोलते हैं। चोरी करते हैं। कुछ बच्चे दुकान से सामान चोरी करते हैं तो कुछ स्कूल के साथियों के बैग से पैसे चुराते हैं। कुछ गलत संगत में पड़कर ब्लैकमेलिंग, किडनेपिंग, लूट आदि कामों में लग जाते हैं। कई लड़कियां पेरेंट की मदद करने के लिए, अपना खर्च खुद निकालने के लिए गलत रास्तों पर चल पड़ती है। बाद में जब पेरेंट को ये बातें पता चलती है, तब उन्हें अहसास होता है कि बच्चों को इतना तनाव देकर उन्होंने बच्चों को कितनी बड़ी मुसीबत में डाला, इसलिए बच्चों से हर चीज शेयर करने से पहले देखें कि वह इसे हैंडल कर भी सकते हैं या नहीं।