बच्चों को जरूर सिखाएं एडजस्ट करना

बच्चों को जरूर सिखाएं एडजस्ट करना

शालिनी जी अपनी बहन से करीब 10 सालों से मिली नहीं थीं। घर की जिम्मेदारियों के कारण उन्हें कभी वक्त ही नहीं मिला। अब जबकि घर की सारी जबावदारी बहू ने संभाल ली है, तो उन्होंने सोचा कि बहन से मिलने गांव चली जाऊं। गांव में रहे भी जमाना हो गया है। आराम से 1 महीना रहूंगी। जब उनका जाना तय हुआ तो उनकी 15 साल की पोती पूजा ने भी साथ चलने की जिद की। उन्होंने सोचा कि वह भी गांव का अनुभव लेगी, लेकिन उनका यह निर्णय उनके लिए मुसीबत बन गया। गांव पहुंचते ही पूजा ने हर बात पर मुंह बनाना शुरू कर दिया। ‘अरे यार, सब तरफ गोबर ही गोबर है… यक्क… इस खटिया पर मैं नहीं सोऊंगी, मुझे तो नरम गद्दा चाहिए…छी.. ये टॉयलेट कितना गंदा है… मैं नहीं जाऊंगी… पानी से कैसी स्मेल आ रही है, मुझे नहीं पीना… मुझे अभी के अभी घर जाना है…। मैं नहीं रह सकती।’ उसने यह कहते हुए जिद पकड़ ली। खाना-पीना बंद कर दिया ताकि टॉयलेट न जाना पड़े। बस फिर क्या था, दूसरे दिन ही शालिनी जी को भी गांव से निकलना पड़ा। बहन से वादा किया कि अगली बार अकेली ही आऊंगी।

पूजा की तरह कई बच्चे हम अपने आसपास देखते हैं। हो सकता है कि आपके घर में ही हों। इन बच्चों को ऐसा हमने यानी पैरेंट्स ने बनाया है। हमने ही बचपन से इन्हें इतनी आरामदायक जिंदगी दी कि वे थोड़ी-सी भी परेशानी सहन नहीं कर पाते।

हम बचपन से ही मजबूत व एडजस्टेबल थे

जब हम छोटे थे, तो हम धूल, मिट्‌टी में खेलते थे। हैंडपंप का पानी पी लेते थे। टायर दौड़ाते थे। बारिश में भीगते और कागज की नाव बनाते थे। कहीं पर भी सो जाते थे। किसी भी दोस्त के घर कुछ भी खा लेते थे.. कहने का मतलब ये है कि हमारे पैरेंट्स ने हमें इन कामों को करने से रोका नहीं, इसलिए हम अंदर और बाहर हर तरह से मजबूत बने।

यही वजह है कि हम आसानी से हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेते है, लेकिन अभी के पैरेंट्स यानी हमने अपने बच्चों को इतना ज्यादा प्यार व कंफर्ट देना शुरू कर दिया है कि वे सुख-सुविधाओं के आदि हो गये हैं। उन्हें हर चीज अपने मुताबिक ही चाहिए होती है। थोड़ा-सा भी बदलाव वे सहन नहीं कर पाते। उनका शरीर भी इतना नाजुक हो गया है कि छोटे-मोटे बदलाव झेल नहीं पाता, वे बीमार हो जाते हैं। इन सब के जिम्मेदार हम पैरेंट्स ही हैं, जिनके हद से ज्यादा प्यार ने बच्चों को कमजोर बना दिया है।

भविष्य में पछताना पड़ सकता है

आज भले ही पैरेंट्स को अपनी ये गलती समझ नहीं आ रही, लेकिन भविष्य में जब बच्चों के साथ वे नहीं होंगे या बच्चों को उनसे दूर रहना होगा, तब उन्हें बच्चे को तकलीफ में देख, परेशान होता देख अहसास होगा कि काश बचपन में ही उन्हें इतना नाजुक न बनाया होता। उदाहरण के लिए हम उन लड़कियों को ही देख लें, जिन्हें मायके में पैरेंट्स ने कोई भी काम करने नहीं दिया और ससुराल में जब उन्हें थोड़ा-सा भी काम करना पड़ता है तो वे गुस्सा होकर मायके आ जाती हैं।

संयुक्त परिवार में चीजें मिल-बांटकर खानी पड़ती है, हर तरह के स्वभाव के इंसान के साथ रहना पड़ता है, तो वे एडजस्ट नहीं कर पाती। ऐसे ही कई लड़के मां के लाड़ले होते हैं, उन्हें हर चीज उनकी पसंद की खाने को मिलती है, कमरा साफ-सुथरा मिलता है, मोजे, रूमाल, घड़ी, टिफिन सब हाथ में मिल जाता है, लेकिन जब पत्नी ये सब नहीं करती या वे कहीं बाहर रहने जाते हैं, तो ये सुविधाएं न मिलने से वे तिलमिला जाते हैं, परेशान हो जाते हैं।

पैरेंट्स क्या करें?

1. बच्चे अगर कोई सब्जी पसंद नहीं करते और उनके लिए कुछ दूसरी चीज बनाने की मांग करते हैं तो उनकी इस मांग को पूरा न करें। फिर भले ही वो भूख हड़ताल कर दें। उन्हें थोड़ी देर भूखा रहने दें। कुछ देर बाद मजबूरी में ही सही, वे उस सब्जी को खा लेंगे। अगर आप उन्हें ऑप्शन में दूसरी चीज बना देंगे, जैसे उनकी फेवरेट सब्जी, मैगी, पास्ता या ऐसा कुछ। तो फिर वो कभी भी सब्जियां खाना नहीं सीखेंगे।

2. हर पैरेंट को लगता है कि बच्चों को वो सारी चीजें ला दें, जो उन्हें नहीं मिली। जिसके लिए वे तरसे। इस सोच की वजह से पैरेंट्स बच्चों को ढेर सारी चीजें उनके बिना मांगे, बिना संघर्ष किये ही दिला देते हैं। साइकिल, फोन, तरह-तरह के खिलौने, खुद का कमरा, बेड, अलमारी, ब्रांडेड कपड़े वगैरह… वगैरह…।

ऐसा करने से बच्चे इन चीजों को पाना अपना हक, अधिकार समझते हैं और हर जगह ऐसी ही सुख-सुविधा की उम्मीद करते हैं। जब उन्हें किसी के घर में ये सारी चीजें नहीं मिलती, तो वे चिड़चिड़े हो जाते हैं, विद्रोह करते हैं। इन चीजों के बिना एडजस्ट नहीं कर पाते। इसलिए बच्चों को ये चीजें यूं ही नहीं दिला दें। उन्हें इसके लिए संघर्ष करने दें

3. पैरेंट्स सोचते हैं कि बच्चों को अपनी क्लास के दूसरों बच्चों के साथ ही खेलना चाहिए। अगर वे उनसे निम्न आय वाले लोगों के बच्चों के साथ खेलेंगे, तो बिगड़ जायेंगे। लेकिन यह सच नहीं है। आपके बच्चों के ऐसे दोस्त भी जरूर होने चाहिए, जो गरीब हो, जिनके पास सुख-सुविधाएं न हों। उनके साथ रहकर बच्चे संघर्ष करना सीखेंगे। उन चीजों की वैल्यू करना सीखेंगे, जो उनके पास है

4. बच्चों को शुरुआत से ही चीजें शेयर करना सीखाएं। अपनी हार को स्वीकार करना सीखाएं। सॉरी बोलना, झुकना, माफ करना सीखाएं। उन्हें ऐसी जगहों पर ले जाएं, जिससे उन्हें पता चले कि गरीबी क्या होती है? खाने की कमी क्या होती है? कैसे दुनिया में कई लोग फटे कपड़ों में, बिना घर के रह रहे हैं। एक वक्त का खाना भी मुश्किल से उन्हें मिल रहा है।

जब बच्चे ये सब देखेंगे, तो उन्हें इन चीजों की कीमत पता चलेगी, तब वो पसंद ना आने वाली सब्जी को भी खायेंगे और कम खिलौनों में भी खुश रहेंगे। इसके साथ ही वे एक भावुक, समझदार इंसान बनेंगे, जो ऐसे लोगों की मदद करने को हमेशा आगे रहेगा।

5. हर सिचुएशन में एडजस्ट करना एक कला है। बच्चों को ये कला जरूर सिखाएं। उन्हें समझाएं कि वे जितना कठिन परिस्थितियों में खुद को ढालेंगे, वे उतने मजबूत बनेंगे। जब आप बुरी से बुरी जगह में, बुरे से बुरे लोगों के बीच रहना सीख लेंगे तब आपको दुनिया की कोई भी चीज तकलीफ नहीं पहुंचा सकेगी। आप भीतर से मजबूत होंगे। आप दुनिया की हर जगह घूम सकेंगे, बिना किसी फिक्र के।

बच्चों को बताएं कि पूरी दुनिया उनके घर की तरह आरामदायक नहीं है और न ही सभी लोग अच्छे व मददगार हैं। कई बार उन्हें ऐसे लोगों के बीच भी रहना पड़ेगा, जो अलग तरह का व्यवहार करते हैं। ऐसे में जब वे छोटी-छोटी बात पर परेशान होने लगेंगे, तो उनकी खुद की जिंदगी दुख से भर जायेगी। लेकिन जब वे हर परिस्थिति में खुश रहना सीख लेंगे, तो उन्हें कोई दुखी नहीं कर सकेगा।