‘ज’ का जलवा

‘ज’ का जलवा

‘ज’, जहाज का, यह हमारे ज़माने में सबको ज़ुबानी याद था, लेकिन जब से जीनियस होना मतलब ज्यामितीय को ज्यॉमेट्री और भूगोल को ज्यॉग्रफ़ी या जूलॉजी, जियोलॉजी जैसे शब्दों को जानना हुआ तब से ‘ज’ कहते ही नई पीढ़ी के मानस में जिन, जिमिन, जे-होप, जंगकुक नाम आ गए। ये नाम साउथ कोरिया के बीटीएस बैंड के जवाँ चेहरे हैं, जिनकी आज की पीढ़ी दीवानी है। मतलब ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध’। हमारे लिए ‘जल ही जीवन’ का नारा था, इनका ज़रिया ये है, अब जो है, सो है।

ज़िंदादिली का नाम

जलतरंग से सजते ‘ज’ से क्या याद आता है ज़िंदगी, ज़िंदादिली, ज़िंदगानी, जीवन, जीवनी या जल और जलचर? जिंदगी ज़िंदादिली का नाम है, यह आपने सुना ही होगा, जीवित रहना मतलब जो जीवन आप जी रहे हैं वह है- जीवन ‘जीना’ और दूसरा ‘जिना’ मतलब सीढ़ियाँ होती हैं। ‘जल’ मतलब पानी हुआ न और इससे ‘जल जाना’ और ‘जल-भुन जाना’ भी आता है।

एक जलन मतलब ऐसिडिटी है, दूसरी गर्म चीज़ को छू लेने पर होने वाली जलन है और तीसरी ईर्ष्या है। ‘ज’ से एक बहुत जुदा-सा शब्द भी ज़ेहन में आता है-‘जग’, इसका एक अर्थ पानी रखने का बरतन होता है और दूसरा अर्थ दुनिया-जहान से भी होता है। इसी तरह ‘जुग’ मतलब युग और ‘जुग-जुग जीना’ मतलब लंबी आयु पाना या जीता रह कहने पर लंबी आयु पाओ होगा और ‘जो जीता वो सिकंदर’ में वह जीत का अर्थ दे जाएगा।

‘ज’ में जान

ज़रा-से ‘ज’ का जलवा कैसे अपनी ज्योत्स्ना ज़र्रे-ज़र्रे में बिखर कर ज़हेनसीब करवा देता है! जीव-जंतु, जानवर भी इस जीवमंडल के ‘ज’ को जैविक बनाते हैं और जानेजाँ भी। इस ‘ज’ में जान अटक जाती है तो जानू बन जाता है और उर्दू में इसकी तासीर तो बड़ी खूबसूरती से मामू जान, मौसी जान, अब्बा जान के रूप में आ जाती है। एक ‘जाना’ का अर्थ गमन होता है तो दूसरा जानेजाना के साथ भी आ जाता है।

इस ‘ज’ से जुस्तजू है तो जुदाई भी, कोई जहाँपनाह है, उनकी जंग है तो ज़ोर आज़माइश और ज़ोर ज़बरद्स्ती भी। जनाब आपको बताते हैं उर्दू से जब यह शब्द झारखंड में चला जाए तो जोहार हो जाता है मतलब अदब से नमस्कार करना और पूरे देश में उस अदब की याद दिलाता ‘जी’ हो जाता है। बड़ी चुहल के साथ यह जीजाजी के साथ आता है, जीजी के पति को बड़ा आदर देते हुए उनके आगे भी जी लग जाता है और पीछे भी और बन जाता है जीजाजी।

‘ज’ का जज़्बा

जनवासे में जाम छलक जाए और जमकर कोई पीने बैठ जाए तो कई बार जलजला उठता है, जुर्म हो जाता है। जब उसकी जमकर जाँच होती है तो पीने वालों को जीना दुश्वार लगने लगता है। उनकी तासीर ज्वनलशील पदार्थ जैसी हो जाती है। फिर वे दिल्ली के जंतर-मंतर चले जाएँ तब भी उन्हें जहन्नुम में पड़े होने का अहसास होगा। ‘ज’ का जज़्बा देखना हो तो उन जाँबाज़ जवानों का देखिए जो ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ कहते हुए देश को जन्नत जान सीमा पर खड़े रहते हैं। इनमें वे महिला सैनिक भी शामिल हैं जो ज्वैलरी का शौक पूरा करते हुए ज़िंदगी बिताना नहीं चाहतीं बल्कि कुछ कर गुज़रने के लिए सेना में ज्वॉइन होती हैं।

आपको जानकारी होगी ही कि वे किसी भी प्रांत-जिले की हो सकती हैं और आपको जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वे जिम जाती हैं और जीभ पर नियंत्रण रखती हैं ताकि जी-जान से देश के लिए जुटी रहें। वरना कई जेठानी-देवरानी तो घर-गृहस्थी में ही जुती रहती हैं, जच्चा-बच्चा जनती चली जाती हैं, ज़ुल्म सहती हैं और पति उन्हें ‘पैर की जूती’ भी न समझे तब भी जघन्य अपराध और ज़ख़्म सहकर जहन्नुम में रहकर भी खुद को धन्य मानती हैं। जमाई का मान इतना होता है कि जिधर जाए उधर उनकी जय-जय होती है और ये उनके पीछे-पीछे चलती चली जाती हैं। हमारी संस्कृति की जड़ों को पकड़े रहना चाहिए लेकिन जब वह जर्जर होने लगे तो उसे जड़मूल से उखाड़ फेंकने का जतन करते भी आना चाहिए।

जैंटलमेन

कभी-कभी जमावड़ा भेड़ चाल चलता है। जनतंत्र में जनता का शासन होता है लेकिन जमात उतना नहीं जानती जितना उन्हें जानना चाहिए। ‘जमात’ मतलब यहाँ बिरादरी से तात्पर्य है और वैसे जमात मतलब कक्षा भी होता है। जम्हूरियत को जब जिस्म बेचकर ‘दो जून की रोटी’ न मिल पाए तो कुछ जमघट जुटा जुगाड़ करने लगते हैं। यदि कोई जासूस इस जालसाजी को जान लें और जाली दस्तावेज जब्त कर लें तो फिर जेल भी जाना पड़ जाए तो जज की सुनवाई तक इंतज़ार करना पड़ सकता है। कभी-कभी जल्लाद से सामना हो जाता है और वह बड़ा जाचक होता है। बेहतर है जैंटलमेन बने रहिए।

ज्जे बाsत

चलिए ‘ज’ की जलवायु बदलते हैं। इस ‘ज’ से बड़े जबड़े वाला जेलर है तो बिना ज़िप की जैकेट पहना जोकर भी और यह ‘ज’ यह भी कहता है कि ‘जात न पूछो साधु की’, हर कोई जनभाषा में कह उठता है-‘ज्जे बाsत!’

यह ‘ज’ का जूस है जिसका रस जनम-जनम की या जन्मों की प्यास बुझा देता है। क्या जोश-जोश में यह बहुत ‘ज’ की ज्वलंत बातों का जादू बहुत ज़्यादा हो गया? भले ही आप जवाब न दें, हम ‘ज’ का जाप करें और आप जाड़े में जप माल करने लगें या रात गए जुगनुओं को देखने लगें लेकिन जमा हुआ ‘ज’ अपनी जगह बनाकर अपने लिए जमा-पूँजी जोड़कर अपना जमा-खर्च जुटा ही लेगा। ‘ज’ की जेब ज़रा भरी न हो तब भी फाकामस्ती में वो गा पड़ेगा – ‘मेरा जूता है जापानी’। जल्दी से बताइए इस गीत में जग के और कितने देशों के नाम है। कोई जल्दबाजी नहीं, हम आपको सोते से जगा देते हैं।

‘ज’ की जंजीर

अब ऐसे तो चुप न रहिए जैसे आपने ‘ज़ुबान पर दही जमा’ लिया है, हमने जामन तो दिया ही नहीं, आप जम कैसे गए? एक ‘जमना’ मतलब फ़्रीज़ हो जाना होता है और एक जमना मतलब जँचना भी। देखिए ‘ज’ की जंजीर को, हमने जहाँ से शुरू किया था, बारह ज्योतिर्लिंग कर हम फिर वहीं आ गए कि एक ही शब्द के दो अलग अर्थ कैसे संदर्भ बदलने से बदल जाते हैं। क्या नहीं समझे? ‘ज’ की इतनी जुगाली करने के बाद अब यह तो ऐसे ही हुआ कि सारी रामायण सुनकर आपने पूछा ‘राम की सीता कौन या जनक की जानकी कौन’? जुनून में आकर जामुन की गुठली खा लेने जैसे मुँह मत बिचकाइए, उससे ज़्यादातर लोगों को ज़्यादाकर जठर भी हो सकता है। तब जमालघोटा पीने से तो बेहतर है जामफल खाइए। यदि जुकाम होने से डर रहे हैं तो जायफल खाकर जम्हाई लीजिए और आराम से सो जाइए।

जड़ाऊ जेवर

‘ज’ के जड़ाऊ जेवर पहनने के लिए जिगरवाला होना पड़ेगा। वैसे यूँ जोश-खरोश में आभूषणों को पहन निकलना जोखिमपूर्ण या जोखिमभरा हो सकता है। जौहरी ही नहीं, जेबकतरे-उठाईगिरे, जुआरी भी असली-नकली की पहचान रखते हैं। जब ‘जय श्रीराम’ कह जटायु रक्षा नहीं कर पाया तो सीता मैया ने इन्हीं आभूषणों को मार्ग बताने के लिए रास्ते में फेंका था। कभी-कभार जैसे अपने जन्मदिन पर जरदोजी की साड़ी के साथ इन्हें पहन सकती हैं पर जोंक की तरह अपने से चिपकाकर मत रखिए। ज्वैलरी बॉक्स में रख दीजिए और जो वो न हो तो जार-मर्तबान में रख दीजिए। ज़मीन-जायदाद या जवाहरात को जानबूझकर शो-ऑफ़ करते हुए अपनी ज़मींदारी मत दिखाइए, ‘ज’ जताता है जहरीले मत बनिए बल्कि ज़मीन से जुड़े रहिए।

जय हो

जानदार हो जाइए, ज्योतिमान हो जोधपुर हो आइए या जम्मू चले जाइए। जन्मदिन तो सबके आते हैं लेकिन जयंती उन्हीं की मनाई जाती है जो जीवनभर ज़मीन से जुड़े रहकर जुझारू कार्य करते हैं, न कि जी-हुज़ूरी करते हैं। जीवनधारा को बहने दीजिए ताकि आपके जीवन दर्शन से दूसरे भी प्रेरणा पा सकें तो जिद्दीपन छोड़िए, ज़ाहिल न बनिए। ‘ज’ की ज़रूरत ज़रूर जानिए क्योंकि जानी-बूझी बात है, जानी-मानी बात है कि यह ‘जड़मति को सुजान’ करता है। आप भी जन आंदोलन छेड़िए, जन समुदाय को जिगरी बनाइए,जिम्मेदार बनिए, जिंदाबाद हो जाइए ताकि सब आपकी जयकार कर कहें- जय हो!

(भाषा परिशिष्ट में पढ़ सकते हैं अब तक के सारे वर्ण).......